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Showing posts from December, 2017

प्रधानमंत्री जी ! बहुत उम्मीदें थी आपसे लेकिन अभी तक निराश हूँ

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"मैं यहां आया नहीं हूं मुझे बुलाया गया है, गंगा मैया ने बुलाया। देश की कमान 60 महीनों के लिए इस प्रधानसेवक को सौंप दीजिए। पाई पाई का हिसाब दूंगा। मुझे देश का चौकीदारी बना दीजिए। न खाउंगा न खाने दूंगा।" आपके ऐसे ना जाने कितने बयान थे, जिन्होंने 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान छपे अखबारों में हेडलाइन बनकर सुर्खियां बटोरीं। चुनावी रैलियों के मंचों के साथ आपके भाषण बदलते रहे, बिहार गए तो बिहार की जनता का दर्द आपकी जुबान पर था और यूपी आए तो यूपी की जनता का दर्द। अपनी क्षमताओं की नुमा​इश से आपने एक ऐसा माहौल बना दिया मानो हर मर्ज की एक ही दवा है मोदी। सरकारी विभागों के भ्रष्टाचार से लेकर राजनीति में वंशवाद और परिवारवाद तक, किसानों की आत्महत्या से सीमा पर आतंकवादियों के खिलाफ लड़ाई में जान गंवाते सेना के जवानों तक, गरीबों को उनका हक दिलाने से लेकर विदेशों में छुपाए कालेधन को वापस लाने तक और शिक्षा के गिरते स्तर से लेकर रोजगारों के अवसरों को बढ़ाने तक हर परेशानी को दूर करने की जिम्मेदारी आपने ली थी। वो भी 60 महीनों में। आज आप प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल का तीन च

बलिया बनाम लखनऊ, बागी बनाम तहजीब

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पड़ोसी (अंसारी जी) ने लिख मेरी बाइक पर चस्पा किया है। (मैंने उनके गेट के सामने अपनी बाइक लगा दी थी) हर शहर और इलाके की आब ओ हवा का अपना एक अलग रंग और मिजाज होता है जिसका असर वहां के लोगों पर देखा जा सकता है। इस बात को आज मैने बड़े करीब से महसूस किया। ' वीरों की धरती जवानों का देश बागी बलिया उत्तर प्रदेश' इस कहावत को सुनकर जवान होते-होते कब मैं अपने भीतर एक बागी को देखने लगा यह बात मुझे भी नहीं मालूम, जिन्दगी आगे बढ़ी और मैं भी आगे बढ़ने और कुछ बड़ा करने के इरादे के साथ बलिया से निकल लिया। साथ में मां बाप के अशीर्वाद और जरूरत के सामान के साथ जो चीज सबसे भारी समझ पड़ रही थी वो अपना बागी एटीट्यूट था।  अपना नया ठिकाना लखनऊ में जमा था, जो चार साल बाद आज भी कायम है। वही चार दोस्त और एक दो कमरों का किराए का मकान जिसे हम जैसे बागी फ्लैट का नाम दे चुके हैं। पढ़ाई, नौकरी और बागी की प्राइवेट लाइफ इन तीन बातों के बीच मजे की बीत रही है। लखनऊ आकर बहुत कुछ बदला है, बहुत कुछ सीखा है तो बहुत कुछ पीछे छूट गया।  बहुत दिन बाद आज फिर कुछ नया सीखने को मिला, जो लखनऊ के सिवा कोई और शहर नहीं