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Showing posts from 2015

अलविदा से पहले तेरा शुक्रिया ए जाने वाले साल...

बस 1 दिन और, और शुरुआत एक नए साल की । देखते देखते 365 दिन गुजर गए । युं लगता है जैसे अभी कुछ दिन पहले ही तो हम एक दूसरे को नव वर्ष की शुभकामनायें दे रहे थे । वक्त थमता नहीं है । दिन हफ़्तों में, हफ्ते महीनों में और महीने साल में बदलते जाते हैं । पुराना बीत जाता है और नया साल आ जाता है । लेकिन बदलता क्या है ? सिर्फ तारीख ? या कुछ और भी । जी हां, गुजरते वक्त के साथ और भी बहुत कुछ बदल जाता है । बीता साल बहुत सी खट्टी मीठी यादें छोड़ जाता है । बहुत से पलों को तो हम भूल भाल भी जाते हैं । लेकिन इस बार आप एक काम कीजिये,आज के दिन जैम के जी लीजिये  फुरसत के साथ , जाने वाले साल की यादों को ताजा कीजिये ।ख़ुशी के पलों को याद करके फिर एक बार आनंदित हो जाइए । आपने कुछ सपनों के ताने बाने बुने होंगे, उनको इस आने वाले साल में एक दिशा देने का प्रयास कीजिये । कुछ गलतियां भी हुयी होंगी, कुछ यार रूठे होंगे । कुछ नए मित्र भी बने होंगे । किसी के आँगन में नन्ही किलकारियाँ गूंजी होगी । कुछ सुखद तो कुछ दुखद घड़ियां भी आई होंगी । ये ही तो जीवन है । जीवन के इन हसीन, मधुर पलों को सहेजकर रखें । रूठे हुओं क

आइये अपने अन्दर एक दीप जलाये ..

  एक बार फिर दिपावली का त्योहार मनाने हम जा रहे हैं दीपावली के छ: दिन बाद हम डूबते सूर्य को नमस्कार कर अगले दिन उगते सूर्य को नमस्कार कर छठ त्योहार मनाएंगे। सभी त्योहार हमें मन के अंधकार को दूर कर संतोष की कला सिखाता है ताकि हम सुख व शांति प्राप्त कर मुक्ति पाने के लिए प्रार्थना कर सकें।                                                                           क्या वास्तव में हम ऐसा कर पा रहे हैं। आत्ममंथन करें, आज फिर एक बार हमारे सामने एक सुनहरा अवसर है गणेश पूजा, श्राद्ध, दुर्गापूजा, दशहरा, बकरीद के बाद दीपावली, छठ, और गुरूनानक जयन्ती सभी बार-बार मुझे यह बताने का प्रयास कर रहा है कि सत्य की सदा जय होती है। रावणी शक्ति का हमेशा अंत होता है, अंधकार पर सदा प्रकाश विजय प्राप्त करती है लेकिन आज हम आधुनिकता के दौड़ में अंधा होकर दिन-रात लगे हुए हैं। हमें इतना भर भी सोचने का समय नहीं है कि जो कुछ भी हम कर रहे हैं क्या वह उचित भी है? हम यह भी भूल चुके हैं कि हम जो कुछ दिन-रात संग्रह कर रहे हैं, वह सब कुछ, इसी जगत में छोड़कर जाना होगा। धन कमाना बुरा नहीं है लेकिन अंधा होकर धन अर्जित करना बि

आदमी ही आदमी को छल रहा है

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                 आ दमी ही आदमी को छल रहा है, ये क्रम  आज से नही बरसों से चल रहा है,                                                रोज चौराहे पर होता है सीताहरण जबकि मुद्दतों से रावण जल रहा है .                                                                                                                                                    

कलयुगी रावण

                                                                                                                                                                                                                  कलयुगी रावण                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      विजयदशमी पर राम ने रावण का अंत तो कर दिया था , पर क्या वास्तव में इस कलयुग में रावण का अंत हो गया है। .. क्या इस समाज में अब रावण नहीं रहे?. मुझे तो लगता है की वो रावण कही आज के कलयुगी रावणों  से बेहतर था , कही न कही उसके अंदर

वाह रे ...........मोदी राज़

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                        वाह रे...मोदी राज़                                                                                                                                        कुछ दिनों पहले की खबर है , एक पांच साल की लड़की का तीन लोगों ने मिल के बलात्कार किया और कल फिर से ढाई साल की बच्ची का सामूहिक बलात्कार हुआ, दोनों के जननांग बुरी तरह चोटिल हैं और उन से लगातार खून बह रहा है. लेकिन इन सब ख़बरों से बेखबर  'बहुत हुआ नारी पर वार, अब की बार मोदी सरकार' का नारा देने वाले बीजेपी के नेता सुबह से शाम तक सिर्फ गौ-रक्षा का महत्व ही समझा रहे हैं. लड़कियों को दिन ढलते ही घर आने की सलाह देने वाले संस्कृति मंत्री का अभी तक कोई बयान नहीं आया. योगी आदित्यनाथ का खून भी अभी तक नहीं खौला.  शायद उन के संस्कृति रक्षण की परिभाषा सिर्फ गाय तक ही सीमित है. एक दूसरी खबर में एक शख्स को गाय की तस्करी में शामिल होने के शक के चलते पीट पीट कर मार डाला गया. जिस समय हम बीजेपी के वरिष्ठ नेता मनोहर लाल खट्टर के इस बयान पर कि मुसलमान बीफ़ खाएं तो भारत छोड़ें, पर परिचर्चा कर और सुन रहे थे, हिमाचल प्रदेश में

कलाम को हम सब का सलाम

                            कलाम को हम सब का सलाम.                                                                                                                                                                                                                                      भारत के पूर्व राष्ट्रपति, महान वैज्ञानिक,सफल विचारक एवम शिक्षक ऐ पी जे अब्दुल कलाम किसी परिचय के मोहताज़ नहीं है। यह भारत के सबसे पसंदीदा युथ आइकॉन थे , है , और रहेंगे । इन्होने अपनी मेहनत, लगन और इच्छा शक्ति से अर्श से शिखर तक का सफर तय किया है। मजहब के नाम पर सियासत करने वाले राजनेताओ को कलम साहब से प्रेरणा जरुर लेनी चाहिए । आज ही वह दिन है जिस दिन काका कलम जैसे शख्सीयत का जन्म हिंदुस्तान की पावन धरती पे हुआ था ,जो की पुरे भारत वर्ष के लिए बेहद गर्व की बात है। .आज हमारे बीच कलाम साहब तो नहीं रहे पर उनकी धुंधली यादे आज भी हम सब के बीच में है और शायद सदियों तक रहेगी । कलाम को हम सब का सलाम............ कलाम साहब के कहे हुए कुछ प्रेरणात्मक वाक्य जिन्हें सुनने के बाद कुछ कर गुजरने की चाहत सी होने लगती है जैसे

सत्ता की धौंस

                                                       सत्ता की धौंस  सूबे में सत्ताधीशो के ऊपर सियासत का नशा इस कदर हावी  है ,कि यहाँ मंत्री के संतरी और विधायक जी के चमचे भी अपने आप को मंत्री व विधायक से काम नहीं समझते है। इन्हे न ही कानून की परवाह है और न ही प्रशासन का खौफ। ये वो लोग है जिनको लोगो ने सत्ता की बागडोर सँभालने को दिया है और वही लोग इस ओहदे का फायदा उठाते हुए कानून और प्रशासन को अपनी उंगलियो पर नचाने की कोशिश कर रहे है। आलम ये है कि आये दिन ऐसी घटनाये देखने को तो आ रही पर इनको काबू में करने वाले हिम्मत नहीं जुटा पा रहे है ,हिम्मत जुटाए भी तो आखिर कैसे ? इन घटनाओ को अंजाम देने वाले कोई और नहीं बल्कि सत्ता पे विरज़मान वो लोग है जिन्हे जनता ने अपने जनप्रतिनिधि के रूप में गद्दी पे बिठाया है।सपा सरकार में यह कोई नयी बात  है ,इतिहास उठा कर देखा जाये तो न जाने कितनी ऐसे मामले है जो की ठंडे बस्ते में जा चुके है। और ऊपर से जो अधिकारी इन लोगो के खिलाफ बगावत करने की हिम्मत जुटाता भी है तो ये लोग अपने सत्ता का धौस जमाते हुए इन अधिकारियो का तबादला करा देते है या फिर इन्हे डरा धम

nayi soch naya jazba

                   मजहब के नाम पे कत्लेआम ........ ,इंसानियत शर्मसार                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                 धर्म और उसकी धारणा में हम अंतर आज तक नहीं कर पाए हैं। धर्म क्या किसी इंसानियत, मानवीयता और सहिष्णुता से अलग कोई परिभाषा गढ़ता है? सवाल उठता है कि आखिर धर्म के कितने रूप होते हैं। हमने धर्म और उसकी धारणा को कभी समझने की कोशिश नहीं की। अगर की होती तो हमारे सामने उत्तर प्रदेश के दादरी जैसी दर्दनाक घटना न होती।  हम अपने को वैष्णव जन कहलाने के अधिकारी नहीं हैं, क्योंकि वैष्णव जन वही होता है, जिसके अंदर दूसरे की पीड़ा का अहसास हो। उसी को इंसानियत और धर्म कहते हैं। हम जो धारण कर लें, वही हमारा धर्म नहीं होता। गौतमबुद्ध नगर के दादरी के बिसाहड़ा गांव में 28 सितंबर को एक अफवाह ज

पहले ढोंगी बाबा, अब ढोंगी गुरु

                              पहले ढोंगी बाबा, अब ढोंगी गुरु                                                                                                                                                                    शिक्षा का  मन्दिर कहा जाने वाले विद्यालय   ,जहा गुरु को भगवान का दर्ज़ा दिया  जाता   है। उस पवित्र मंदिर में आज भी कुछ गुरु ऐसे है जिनकी नज़रे छात्राओ के जिस्म पर ही रहता   है। और मौका मिलते ही वो अपनी सोच को अंजाम तक पहुचाने में लग जाते है। आज के समय में  दरिंदगी की हद तो तब पार हो गयी जब ये कलयुगी गुरु नवजात बच्चियों तक को भी नहीं बख़्शते है। वो माता -पिता जो अपने कलेजे के टुकड़ो को गुरुओ के सहारे निश्चिंत हो कर घर से विदा करते है ,पर उन्हें क्या पता की वो जिसके पास भेज रहे है वही गुरु उनके बच्चो के साथ इस प्रकार की शर्मनाक हरकत करते है। छात्राओ के लिए सबसे बड़ी समस्या   उस वक़्त उत्पन्न होती है   जब वो अपने ही माँ बाप को अपने गुरु की काली करतूत बताने में शर्म महसूस करती है ,इन्ही में से कुछ लडकिया अपनी आपबीती किसी से ना बया कर पाने के कारन दुनिया क

ek nazariya ...meri kalam se

स्वार्थी इंसान ………।  फिल्म 'ओ माई गॉड' में कांजीभाई का कैरेक्टर प्ले कर रहे परेश रावल की दुकान जब भूकंप में तहस-नहस हो जाती है तो इसका इंश्योरेंस लेने के लिए उन्हें 'ऐक्ट ऑफ गॉड' क्लॉज के कारण भगवान के खिलाफ ही कोर्ट में केस करना पड़ता है. लेकिन क्या फिल्म की बात असल जिंदगी में भी हो सकती है! बिल्कुल हो सकती है, बल्कि हुई है.  मक्का में एक क्रेन गिरने के कारण 107 लोगों की मौत के बाद वहां की कंस्ट्रक्शन कंपनी के एक इंजीनियर ने इसे 'ऐक्ट ऑफ गॉड' (या अल्लाह की मर्जी) करार दिया है. सवाल यह है कि क्या सच में इतने बड़े हादसे और सैकड़ों लोगों की मौत के पीछे 'अल्लाह की मर्जी' थी? या फिर यह भी इंसान की खुद को बचाने के लिए धर्म और भगवान के नाम का आड़ लेने की एक और कोशिश है? प्रकृति या भगवान जिम्मेदार?  जब इस्लाम के पवित्र शहर मक्का स्थित अल हरम मस्जिद में एक विशालकाय क्रेन के गिर जाने से 107 लोगों की मौत हो गई थी. शुरुआती जांच में यह बात सामने आई है कि इस घटना का कारण तेज बारिश और तूफान है. तेज हवाओं के कारण ही इस इलाके की चौड़ाई बढ़ाने के काम में लगा वि

शुरुआत होनी चाहिये

 सोच बदलो       थाने में लुटती इज़्ज़त ,जब कानून के रक्षक की भक्षक बन जायेगे तो आम लोगो का क्या होगा। अभी के समय में जो सूबे की स्तिथि है उसे देख कर कोई भी इंसान अपने आप को महफूज नहीं रक सकता ,जब पुलिस वाले खुद हवस के दरिंदे बन जायेगे तो उनसे हम समाज की सुरक्षा की उम्मीद कैसे कर सकते है ? अब  झांसी का मामला ही देख लो आप जहा पुलिस वालो ने  अपने ही  महिला मित्र को अपने हवस का शिकार बना लिया। हवस की भूख में लोग इंसानियत तक को भी भूल जा रहे है । आलम ये है कि हर रोज़ कोई ना कोई ऐसा मामला देखने को मिल जा रहा है ,समाज में जहा महिला सम्मान कि बात कही तो जाती है पर क्या वास्तव में इसपर हम अमल कर रहे है। सामाजिक आलोचना तो  सभी करते है ,समाज ऐसा है ,वैसा है ,पर समाज के सुधार के लिए गिने चुने लोग ही आगे आते है। अपने यहाँ लोगो को आलोचना करने का बस मौका मिलना चाहिए ,अपना समाज कमियों को पहले देखता है ,अच्छी चीज़े को नज़रंदाज़ करना तो मनो सदियों से चली आ रही परंपरा है।  कब तक इस सोच के साथ जीते रहेंगे। समाज को बदलने के लिए पहले हमें खुद को बदलना होगा। इस चीज़ कि शुरुआत होनी चाहिए। 

शान -ए-अवध: लखनऊ

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हज़ारों शहरों में ऊँचा घराना लखनऊ का है ज़माना लखनऊ का था, ज़माना लखनऊ का है ग़ज़ब के लोग होते थे अलग पहचान थी प्यारे नवाबी दौर में इसकी निराली शान थी प्यारे वो मेले औ तमाशे थे कि दुनिया होश खोती थी दमकती, जगमगाती सी अवध की शाम होती थी नवाबी शहर है जिसको कि लछमन ने बसाया था यहीं हज़रत महल ने हौसला अपना दिखाया था यहीं बेगम ने ग़ज़लों की शमां जमकर जलाई थी यहीं बारादरी में शाह ने महफ़िल सजाई थी यहीं प्रकाश की क़ुल्फ़ी, यहीं राजा की ठंडाई अदब वालों ने पूरे मुल्क में तहज़ीब महकाई ये हज़रतगंज बल्वों की क़तारें जगमगाती हैं यहीं पर शाम को जन्नत की हूरें मुस्कुराती हैं गिलौरी पान की खाकर यहीं आशिक टहलते हैं यहीं आकर बुज़ुर्गों के भी घायल दिल बहलते हैं यहीं रैली, यहीं धरने, यहीं खादी दमकती है यहीं आकर के जनता मंत्रियों की राह तकती है यहीं पर ट्रांसफ़र होते, यहीं रुकवाए जाते हैं यहीं पर आई जी पाण्डा मटकते पाए जाते हैं अमीनाबाद, हज़रतगंज, कैसरबाग़ के जलवे पराठे, नान, कुल्चे, कोफ़्ते, बादाम के हलवे बिगुल इस शहर में फूँका था सूबे में बग़ावत का सिंहासन भी यहीं डोला था, अंग

ज़रा सोचो सब इन्सान है

ये जलते हुए घर किसके है ,ये कटते हुए तन किसके है,ये लोग बिलख काहे  रहे है ,कोई रो रहा है , कोई चिल्ला रहा है। यह मंज़र उस गाव का है जो सदियों से साम्प्रदायिकता सद्व्यहार का मिसाल था ,यहाँ लोग होली,दिवाली ,ईद,बकरईद सब कुछ एक साथ घुल मिल कर मनाते थे पर आज के नज़ारे कुछ अलग ही बयाँ कर रहे है ,कोई इतना क्रूर कैसे हो सकता है। जिसे वो कल तक  अपने गले से लगाते थे आज उन्हें ही जान से मार दिया। धर्म के नाम पर हम इंसानियत तक को भूल जा रहे है। धर्म,मजहब,जाति  ,पाती  अपने जगह सही है पर हमें मानवता की भी मर्यादा को भी समझना होगा। एक नवजवान होने के नाते तकलीफ इस बात से होती है की हमारे उम्र के लोग इस तरह की हिंसा में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे है। कहने को तो शिक्षा का स्तर काफी उच्चा है ,हम आधुनिकता में जी रहे है। पर वास्तव में हमारी वास्तविक सोच बदली है,हमारी विचारधारा बदली है फ़िलहाल की जो स्तिथि है उसे देख कर तो यह बात बिलकुल स्पष्ट हो जाती है की आज भी हमारे समाज की मानसिकता क्या है? आखिर कब हम एक दूसरे से मज़हब के नाम पर ये खुनी रंजिस का खेल खेलते रहेंगे। अपने भारतवर्ष में सियासत करने वाले राजने
माँ मेरे पास आ जाओ अपने आँचल में सुला जाओ बहुत थक गया हु मै  तेरे बिना दुनिया   दुत्कारती है लोग फटकारते है  तेरे बिना कोई नहीं है मेरा यहाँ  मेरा  कोई दोस्त   भी नहीं है। तू होती तो कितना अच्छा होता माँ माँ  तेरी याद सताती है मेरे पास आ जाओ  तेरे साथ  वो मुस्कुराना , बात बात  रूठना मानना   वो यादो का ताजमहल बनाना कितना  अच्छा लगता  था काश आज तू मेरे पास होती अगर तू  सुन रही है तो लौट आ तुझे मेरी याद नहीं सताती क्या माँ  

तन्हाई

तेरे बिना तन्हा  गुज़र जायेगा ये साल भी , जैसे आखे नम  करते करते काट दिया हमने बीता हुआ साल भी ...बस इस उम्मीद में की  साथ रहेगी तो सिर्फ तेरी  यादे , वो परछाई जो बीते हुए साल भी मेरी थी और आने वाले साल भी मेरी रहेंगी । तेरी कमी कभी कभी महसूस तो होती है पर अब आदत सी हो गयी है इन्हे महसूस करने की ,ये भी पता है मुझे कि  हर समय ,हर कदम पर तेरी कमी महसूस होगी , थोड़ा मुश्किल सा लगता है तेरे बिना जीना पर खुद पर भरोसा है जी लूंगा तेरे बैगैर तेरे होने न होने से ज्यादे फर्क  पड़ता मगर हा एक तकलीफ आज भी है और शायद हमेशा रहेगी । ..........