आदमी ही आदमी को छल रहा है
आ दमी ही आदमी को छल रहा है, ये क्रम आज से नही बरसों से चल रहा है, रोज चौराहे पर होता है सीताहरण जबकि मुद्दतों से रावण जल रहा है .