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Showing posts from July, 2017

राज करने की नीति ही राजनीति है,न नीतीश सही न लालू गलत...

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पटना.  लोकतंत्र हो या राजतंत्र दोनों में राज यानी सत्ता सर्वोपरि है। अब सत्ता पर बैठने और बने रहने के लिए क्या नीति अपनानी है वह राजनीति है। सत्ता पर बने रहने के लिए कोई भी नीति अपनाई जा सकती है। इसमें न कुछ गलत होता है और न ही सही, क्योंकि सत्ता सिर्फ सफलता देखती है न कि सही और गलत। जिसकी नीति सफल होती है वही सत्ता को भोग सकता है। ऐसा ही कुछ नीतीश कुमार ने भी किया है। जिस  सूचिता भरी राजनीति का हवाला देकर वह सीएम की कुर्सी से इस्तीफा देकर गए अब उसी सूचिता के नाम पर वह बीजेपी से हाथ मिलाकर दोबारा सीएम की कुर्सी पर कब्जा जमाने में कामयाब नजर होते नजर आ रहे हैं। बिहार की राजनीति में हो रही उठा पटक को शुद्ध राजनीति कहा जा सकता है। पूरे घटनाक्रम को देखा जाए तो नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच एक ताल मेल नजर आता है। जिसकी शुरूआत 2016 में नोटबंदी के समय जिस तरह से नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के फैसले को सराहने और राष्ट्रपति चुनावों में एनडीए प्रत्याशी रामनाथ कोविंद को उनका समर्थन देने से जोड़कर देखा जाए तो गलत नहीं होगा। शायद यह तालमेल उस समय नहीं था जब नी

अल्पसंख्यक नागरिकों के लिए जहन्नुम से भी बदतर है पाकिस्तान, ऐसें है हालात

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क्या आपने सुना है कि किसी देश में नौकरी की योग्यता के लिए धर्म का जिक्र ​किया जाए? क्या किसी देश की सरकार ये सुनिश्चित कर सकती है कि उसके देश में मैला उठाने और सफाई करने का काम धर्म विशेष के लोग ही करेंगे? ऐसा सिर्फ ​इसलिए किया जाएगा ता​कि सफाई कर्मी के रूप में उनका शोषण किया जा सके और ड्यूटी के दौरान दुर्घटना का शिकार होने पर उसे मरने के लिए छोड़ा जा सके। ऐसे में होने वाली मौत एक अल्पसंख्यक की होगी जिसके खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाएगा। ऐसा पाकिस्तान में हो रहा है। पाकिस्तान की हैदराबाद मुनिसिपल कार्पोरेशन ने सफाई कर्मियों की भर्ती निकाली है। इस भर्ती के लिए योग्यता के रूप में आवेदनकर्ता का ईसाई या किसी अन्य अल्पसंख्यक समुदाय से होना आवश्यक है। इसके साथ ही सफाई कर्मियों को अपने धर्मग्रन्थ पर हाथ रखकर शपथ लेनी होगी कि वे सफाई के अलावा कोई अन्य काम नहीं करेंगे। मुनिसिपल कार्पोरेशन की ओर से जारी विज्ञापन पर पाकिस्तान की किसी भी संवैधानिक संस्था ने सवाल नहीं उठाया है। जबकि यह विज्ञापन पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 27 का खुलेआम उल्लंघन करने वाला है। जानकारों की माने तो पाकिस्तान में अ

क्या वास्तव में कोई इलाज नहीं है इन बीमारू मरीजों का, जो लड़की देख शुरू हो जाते हैं....

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महिला सुरक्षा के नाम पर सरकारें, समाजसेवी संस्थाएं और समाज के लिए रोल मॉडल कहलाने वाली सिलेब्रिटीज कितनी भी जागरुकता क्यों न फैला लें लेकिन बीमार मा​नसिकता वाले लोंगों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला। ऐसी बीमार मानसिकता से पीड़ित व्यक्तियों के लिए महिलाएं सिर्फ उनकी शारीरिक जरूरत को पूरा करने का माध्यम भर है। ऐसे लोग तरह तरह से महिलाओं का शोषण करते हैं कभी अपनी गंदी ​नजर से तो कभी अपनी गंदी जुबान से। कुछ तो इससे भी आगे निकल कर अश्लील इशारे से लेकर अश्लील स्पर्श तक करने से नहीं डरते। इससे ज्यादा खराब मानसिकता उन लोगों की है जिन्हें ऐसे अपराधों को होने से रोकने की जिम्मेदारी के लिए सरकारें मोटी पगार देती है, लेकिन ये लोग अपने कर्तव्य को पूरा करने से ज्यादा पीड़ितो का मजाक बनाना पसन्द करते हैं।.... बीमार मानसिकता को दर्शाती एक घटना मुंबई की लोकल ट्रेन में घटी। जिसका जिक्र उसी ट्रेन में सफर करने वाली युवती ने अपनी फेसबुक वॉल पर किया है। इस युवती ने बड़ी हिम्मत दिखाते हुए पूरी आपबीती को लिखा है। इस युवती ने मुंबई पुलिस का जिक्र जिस तरह से किया है उसे देखकर लगता है कि मुंबई पुलिस भी

कौन कितना बदलेगा ?

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साल 2015  है। 2016 का बेसब्री से इंतज़ार हो रहा है। जब 31 दिसंबर की रात 12 बजेंगे, तब पता नहीं क्या-क्या बजेगा? म्यूजिक बजेगा, आसपास पटाखों के शोर से आपके कान बजेंगे। फिर आपके मोबाइल का घंटी बजेगी। लोग आपको शुभकामनाएं देंगे। ऐसे जश्न मनाया जाएगा जैसे सब कुछ बदल जाने वाला है। क्या बदलेगी हमारी सोच? 2015 में कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिन्हें अंजाम देने के लिए हमारी सीमित सोच ज़िम्मेदार है। दादरी के दर्द को भुलाना इतना आसान नहीं है। एक मांस के टुकड़े कि वजह से पड़ोस में रहने वाले एक मुस्लिम परिवार के कुछ सदस्यों की जमकर पिटाई होती है। कुछ लोग रात के अंधरे में उनका दरवाजा तोड़ते हैं। वह भागने की कोशिश करते हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं होता है। भीड़ इतनी हिंसक हो जाती है कि गुस्से में अपना होश खो बैठती है और पीट-पीटकर एक आदमी की हत्या कर देती हैं। यही नहीं उसके बेटे को भी अस्पताल पहुंचा दिया जाता है। यह सब देखते हुए भी हम और आप जैसे लोग चुप रहते हैं। यह सिर्फ दादरी की बात नहीं देश में कई ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। कभी हिन्दू-मुसलमान को मारता है तो मुसलमान-हिन्दू को। हमारे पड़ोस में अत्याचार होते हुए ह

दशहरे में राम बनने वाला 'जुनैद' कैसे बन गया हैवान...

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समाज किस ओर जा रहा है, कहाँ भागा जा रहा है कोई तो पकड़ लो, कोई तो रोक लो, यहां दरिंदा भी कैसे जगह बना रहा है। यह सब बातें अंतरमन को कही न कही टीसती रहती हैं, अन्दर ही अन्दर सवाल पूछती है कि तुम कैसे देख सकते हो, क्या तुममे भी इंसानियत नहीं रही। क्या तुम्हे भी किसी असहाय मां जिसने अपने कलेजे के टुकडे को खो दिया है उसका दर्द महसूस नहीं होता , तुम्हें उस बाप का भी दर्द नहीं महसूस होता जिसने अपने लाठी के सहारे को खो दिया हो और बेसहारा पड़ा कही कोने में तड़प रहा है, या फिर उस बहन का जो इस उम्मीद में रहती थी कि राखी आये तो वो अपने भाई की सूनी कलाई पर राखी बांधे। आखिर तुम्हें इन सब बातों का मलाल कैसे नही होता ,कैसे किसी घर के इकलौते चिराग के बुझ जाने से तुम्हें उस घर में अंधेरा महसूस नही होता...चलो कोई न सिर्फ तुमने ही ठेका थोड़ी ले रखा है दर्द तो सबको महसूस होना चाहिए था फिर भी एक सवाल उठता है कि ये अचानक बिना हवा बयार के अचानक इतना तेज तूफान कहां से आता है जो बिना किसी आहट सब कुछ उथल-पुथल कर चला जाता है। मेरे गांव का वो किस्सा अब सिर्फ किस्सा बन रह गया है जब रहीम चाचा का जुनैद ईद पर घर आता

मां के कफ़न खातिर बिलखते मासूमों का दर्द कैसे बयां किया जाये

यूपी के शाहजहांपुर से एक बेहद मार्मिक दृश्य देखने को मिला है, जिसे देख आपके रोंगटे खड़े हो सकते हैं। यहां 4 मासूम अपनी मां की मौत बाद अंतिम संस्कार के लिए सड़कों पर बिलखते हुए लोगों से भीख मांगते दिखे। जिसे देख  किसी का भी कलेजा पसीज जाये। एक तरफ बच्चे अपनी मां के कफन के लिये भीख मांग रहे थे और सरकारी अमला मामला संज्ञान में होने के बावजूद गहरी नींद सो रहा था। मामला मीडिया में आने के बाद प्रशासनिक अमला हरकत में  आया और आनन-फानन में जिले के जिलाधिकारी ने परिवार के लिये तत्काल एक  लाख रुपये की मदद का ऐलान किया। ये है मामला शाहजहांपुर के जलालाबाद कस्बे के देवरिया में रहने वाली राम देवी अपने 4 बच्चों के साथ झोपड़ी डालकर रह रही थी। सोमवार को महिला जब अपनी झोपड़ी में कुछ काम कर रही थी तभी उसको जहरीले सांप ने काट लिया जिससे उसकी मौत हो गई। परिवार में रामदेवी ही सर्वेसर्वा थीं। चार मासूम बच्चे मां के कफन के लिये भीख मांगने लगे,  हालांकि इस पूरे मामले की जानकारी प्रशासन को ग्रामीणों ने दे दी थी, लेकिन जिला प्रशासन गहरी नींद में सो रहा था। प्रत्यक्ष्यदर्शियों की मानें तो मासूम बच्चे लोगों से य

बहन-बेटियों की सुरक्षा से बढ़कर हैं गौरक्षा...

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वैसे तो अपना देश दशकों से कई गंभीर समस्यायों से जूझ रहा है जिस पर देश के राजनेता समय-समय पर अपनी सियासी रोटी सेंकते है फिर मौके को भुनाने के बाद उसे ठंडे बस्ते में डाल देते है। महिला सुरक्षा देश के लिए हमेशा से चुनौतीपूर्ण मुद्दा रहा है लेकिन इस पर किसी ने उतनी गंभीरता से विचार नहीं किया जितना होना चाहिए। अगर हुआ होता तो समाज में महिलाओं की हालत ये नहीं होती। हमारे देश का एक इतिहास रहा है कि यहां सियासत के जरिये मुद्दे तय किये जाते है और फिर उसपर जमकर सियासत की जाती है. हाल फिलहाल के सबसे चर्चित मुद्दे की बात की जाए तो सरकार ने जिस तरह से गौ रक्षा पर ध्यान केंद्रित किया है उसे देख इसे सबसे गरम मुद्दा कहा जा सकता है। गौ रक्षा को लेकर जिस तरह से समाज के एक विशेष वर्ग में गज़ब का उत्साह देखने को मिल रहा है उससे तो यही अनुमान लगाया जा सकता है कि हमे भी सारे काम छोड़ गौ रक्षा करने में जुट जाता चाहिए। भले ही हमारे नुकड्डों और चौराहों पर गाय कचरा और पालिथीन खाकर मर रही हो लेकिन उससे हमे क्या फर्क पड़ता है। हमे तो सिर्फ इस बात से मतलब है कि कोई जुनैद हमारे गऊ माता के बारे में कुछ भला-बुरा कहे त