प्रधानमंत्री जी ! बहुत उम्मीदें थी आपसे लेकिन अभी तक निराश हूँ


"मैं यहां आया नहीं हूं मुझे बुलाया गया है, गंगा मैया ने बुलाया। देश की कमान 60 महीनों के लिए इस प्रधानसेवक को सौंप दीजिए। पाई पाई का हिसाब दूंगा। मुझे देश का चौकीदारी बना दीजिए। न खाउंगा न खाने दूंगा।"
आपके ऐसे ना जाने कितने बयान थे, जिन्होंने 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान छपे अखबारों में हेडलाइन बनकर सुर्खियां बटोरीं। चुनावी रैलियों के मंचों के साथ आपके भाषण बदलते रहे, बिहार गए तो बिहार की जनता का दर्द आपकी जुबान पर था और यूपी आए तो यूपी की जनता का दर्द। अपनी क्षमताओं की नुमा​इश से आपने एक ऐसा माहौल बना दिया मानो हर मर्ज की एक ही दवा है मोदी।

सरकारी विभागों के भ्रष्टाचार से लेकर राजनीति में वंशवाद और परिवारवाद तक, किसानों की आत्महत्या से सीमा पर आतंकवादियों के खिलाफ लड़ाई में जान गंवाते सेना के जवानों तक, गरीबों को उनका हक दिलाने से लेकर विदेशों में छुपाए कालेधन को वापस लाने तक और शिक्षा के गिरते स्तर से लेकर रोजगारों के अवसरों को बढ़ाने तक हर परेशानी को दूर करने की जिम्मेदारी आपने ली थी। वो भी 60 महीनों में।

आज आप प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल का तीन चौथाई समय पूरा कर चुके हैं। इस दौरान न तो किसानों ने आत्महत्या करना बंद किया है न ही सेना के जवानों की शहादत की घटनाएं कम हुईं। न तो शिक्षा का स्तर सुधरा न ही शिक्षित युवाओं को रोजगार के अवसर मिले। हां कुछ स्तर तक भ्रष्टाचार नियंत्रित जरूर हुआ है, लेकिन यह सुधार भी दिल्ली से कमांड होने वाले विभागों तक ही सीमित है।

इन 45 महीनों के सत्ताई सफर में देश में हुए बदलावों के बीच आपके और आपके कंधों पर सवार होकर सत्ता में पहुंचे लोगों के दृष्टिकोण में बदलाव जरूर आया है। क्योंकि अब 60 महीनों का जिक्र नहीं होता, चुनाव 2019 में होने हैं और आप 2022 का जिक्र करते हैं। मानो 2019 की डेडलाइन खिसका कर 2022 कर दी गई हो।

अब आप बेरोजगारी के मुद्दे को नजरंदाज करते हैं, ऐसे सवालों का जवाब देने के लिए प्रवक्ताओं की एक फौज समाचार चैनलों पर खोखले आंकड़ों की दम पर किसी के भी खिलाफ ताल ठोंक देते हैं। वास्तविकता को नजरंदाज करने का यह नया अंदाज बेहद निंदनीय है, किसी समस्या के समाधान के प्रयासों का असफल होना नई बात नहीं है, लेकिन असफलता को समस्या का हल बताकर समस्या को नकार देना पीड़ादायी होता है। जनता को ऐसी ही पीड़ा की अनुभूति होना अब शुरू हो गई है।

किसानों को उपज का सही मूल्य दिलाने की दिशा में आपकी सरकार ने जो कदम उठाए हैं वे किसी भी सूरत में काफी नहीं कहे जा सकते। किसानों के लिए आपकी ओर से उठाए गए कुछ एक कदम सराहनीय हो सकते हैं, लेकिन दशकों से नजरंदाज हो रहे किसानों के लिए आपके प्रयास ऊंट के मुंह में जीरे की तरह नजर आते है। कागजों और विज्ञापनों में बहुत सी योजनाएं फर्राटा भर रहीं हैं, लेकिन जमीन की जुताई करने वाला किसान आत्महत्या कर रहा है। जिसकी मौत पर सियासत करने वाले सियासत कर रहे हैं।

ऐसा ही हाल आपकी नमामि गंगे योजना का है। लोकसभा का चुनाव लड़ते समय आप जिस गंगा मां के बेटे बन कर पहुंचे थे वह मोक्षदायनी अपने कायाकल्प की बांट जोह रही है। कायाकल्प की योजना के नक्शानबीसों ने कई खाके खींचे लेकिन कौन सा बेहतर है, इस बात का फैसला 45 महीनों में नहीं हो सका।

आपकी जिस ऊर्जा पर देश की जनता को विश्वास था, वह कांग्रेस को खत्म करने में जाया होती नजर आ रही है। वास्तविकता में यह ऊर्जा भारत के नवनिर्माण में खर्च होनी चाहिए थी। नकारात्मकता की राजनीति से ऊपर उठकर सृजनात्मक राजनीति की आवश्यकता है। जो कई मोर्चों पर मात खाती नजर आती है। आपको देखना होगा कि अपने जो भी सृजनात्मक कार्य किए चाहें नोटबंदी हो या फिर जीएसटी देश की जनता ने आपका साथ दिया।

नि:संदेह आपके नेतृत्व पर देश की जनता आज भी विश्वास कर रही है, यह अलग—अलग राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों में स्पष्ट हो चुका है। आम आदमी आप पर भरोसा जता रहा है, आपकी ईमानदार छवि और कड़े फैसले लेने की क्षमता भी वह देख रहा है। जनता के बीच आपकी राजनीतिक विश्वसनीयता सर्वाधिक है। लेकिन 2014 में मोदी लहर बनाने वाला आम आदमी निराशा का अनुभव भी कर रहा है। संभवतय: यह निराशा अभी इनती नहीं बढ़ी, जो आपके कद के सामने किसी दूसरे को खड़ा करने के लिए सहारा बन सके।

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