बलिया बनाम लखनऊ, बागी बनाम तहजीब

पड़ोसी (अंसारी जी) ने लिख मेरी बाइक पर चस्पा किया है। (मैंने उनके गेट के सामने अपनी बाइक लगा दी थी)

हर शहर और इलाके की आब ओ हवा का अपना एक अलग रंग और मिजाज होता है जिसका असर वहां के लोगों पर देखा जा सकता है। इस बात को आज मैने बड़े करीब से महसूस किया। 'वीरों की धरती जवानों का देश बागी बलिया उत्तर प्रदेश' इस कहावत को सुनकर जवान होते-होते कब मैं अपने भीतर एक बागी को देखने लगा यह बात मुझे भी नहीं मालूम, जिन्दगी आगे बढ़ी और मैं भी आगे बढ़ने और कुछ बड़ा करने के इरादे के साथ बलिया से निकल लिया। साथ में मां बाप के अशीर्वाद और जरूरत के सामान के साथ जो चीज सबसे भारी समझ पड़ रही थी वो अपना बागी एटीट्यूट था। 


अपना नया ठिकाना लखनऊ में जमा था, जो चार साल बाद आज भी कायम है। वही चार दोस्त और एक दो कमरों का किराए का मकान जिसे हम जैसे बागी फ्लैट का नाम दे चुके हैं। पढ़ाई, नौकरी और बागी की प्राइवेट लाइफ इन तीन बातों के बीच मजे की बीत रही है। लखनऊ आकर बहुत कुछ बदला है, बहुत कुछ सीखा है तो बहुत कुछ पीछे छूट गया। 


बहुत दिन बाद आज फिर कुछ नया सीखने को मिला, जो लखनऊ के सिवा कोई और शहर नहीं सिखा सकता। सीधी सी बात बिना लाग लपेट और मुंह पर बेइज्जती का फुल डोज सभ्यता के साथ। जिसे हम बलिया में भिगो के जूता मारना कहते हैं। लेकिन मेरी हालत थोड़ी दूसरी थी क्योंकि मेरे भीतर का बागी जूता खाने के बाद मुस्कुरा रहा था। ​अंसारी साहब के साथ अपनी पहली मुलाकात याद आ रही थी।
यहां अंसारी साहब हमारे कथित फ्लैट के सामने रहने वाले वो शरीफ पड़ोसी हैं जो चार सालों में मुझे मिले असली लखनवी आदमी लगे। दो साल पहले जब हमने इस अड्डे को बसाया, तब से लेकर आजतक अंसारी साहब से तीन मुलाकातें हुईं। पहली मुलाकात पर उन्होंने मुझे अपने घर चाय पर बुलाकर जलील किया था, दो शब्दों में उन्होंने अपनी बात निपटाई और मैने तीन घूंटों में चाय का कप। एक बार और दुआ सलाम हुई होगी और तीसरी बार आज जब अंसारी साहब नहीं थे लेकिन उनके साक्षात दर्शन कागज के एक टुकड़े में मुझे हो रहे थे। जिस पर लिखा था, कृपया मेरे गेट के सामने अपना स्कूटर न लगाएं मुझे स्कूटर निकालने में दिक्कत होती है। यह कागज मेरी बाइक की सीट पर चिपका हुआ था।


अगर ऐसा बलिया में हुआ होता तो ये बागी फौजदारी करने पर उतारू होता और सामने वाले सिंह सा​हब का लड़का छत से देख लेने की धमकियां दे रहा होता। लेकिन ये लखनऊ है यहां की हवा और पानी अलग है। यहां के लोग इतनी इज्जत के साथ बेइज्जती करते हैं कि आपके मुंह से दो शब्द नहीं निकलेंगे। आप बेइज्जत होकर मुस्कुरांएगे। लखनऊ की हवा और पानी आपको गुस्से से दूर रखते हैं।

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