काश मैं भी रवीश बन पाता !

इस 'काश' में एक 'आश' तो है, पर शायद वो 'विश्वास' नहीं। उम्मीदें है पर धीरे-धीरे धूमिल होती जा रही है, ऐसा नहीं कि हम प्रयास नहीं कर रहे। ऐसा भी नहीं की इंसान जो सोचे उसे पा न सके। लेकिन फिर भी एक बात का मलाल है जो अंदर ही अंदर कचोटता रहता है। यह मलाल शायद सिर्फ मेरा नहीं है, यह तमाम मेरे जैसे बहुते ही हमउम्र दोस्तों की है जिन्होने पत्रकारिता में यह सोच कर छलांग लगाया है कि हमे क्रांति लिखनी है। एक सवाल मेरे मन में न चाहते हुए भी उठता रहता है कि क्या वाकई हालिया समय में पत्रकारिता के क्षेत्र में क्रांति लिखी जा सकती है ? यह मुद्दा बेहद ही सोचनीय है।


अब बात करते है पाइंट टू  पाइंट। न जाने हर वर्ष कितने युवा यह सोचा कर पत्रकारिता में छ्लांग लगा रहे है कि नाम कमाना है, कुछ उम्दा, बेहतरीन, शानदार करना है लेकिन चूक कहां रह जाती है, आखिर ऐसे युवाओं की मंशा पूरी क्यों नहीं हो पा रही? समस्या कहां आ रही है। तमाम ऐसे सवाल है जो मन ही मन कुरेदते रहते है।

शायद यह भी एक कारण हो- बुलंदियों को छूने का हौसला तब तक ही होता है जब तक वास्तविकता से पल्ला नहीं पड़ता, क्योकि जैसे ही हम बाजारू भीड़ में उतरते है तो एक अलग ही भागा-दौड़ी देखने को मिलती है और हमें भी भीड़ का हिस्सा मजबूरन बनाना पड़ता है। यहाँ तक से भी कोई समस्या नहीं है इससे भी पार पाया जा सकता है लेकिन आगे का क्या?

मीडिया महारथियों का कहना है, यहां काबिलियत कम 'जुगाड़' काम आता है। यह तो बात हुई काम करने की, हक़ीक़त यह भी है कि यहां एंट्री  'जाति' पूछकर भी दी जाती है। वर्तमान समय में मीडिया हाउस पत्रकारिता कम बिजनेस की बात ज्यादा करते हैं, पेड खबरों को प्रमुखता दी जाती है। पत्रकारिता का कोर्स कराने वाले संस्थान इस बात का दावा तो करते हैं कि यहां से डिग्री मिलते ही आप किसी मीडिया घराने में होंगे। लेकिन पढ़ाई पूरी करते ही जब किसी संस्थान की चौखट तक पहुँचते तो सबक के तौर पर एक साल पत्रकारिता का ककहरा सीखने और पैसा ना देने की शर्त पर काम कराया जाता है।

हमारा लेख का उद्देश्य इस प्रोफेशन से लोगों को भ्रमित करना नहीं बल्कि वर्तमान परिस्थियों को उजागर करना है, हालात ऐसे ही रहे तो नवयुवक इस प्रोफेशन से मुह मोड़ने में तनिक भी गुरेज नहीं करेंगे।

अपनी राय जरूर दें। खासकर वो लोग जो मीडिया जगत में एक मुकाम हासिल कर चुके हैं और वो लोग जो हमारी तरह संघर्षरत हैं।

शायद ऐसे तो रवीश नहीं बना जा सकता...                                     

Comments

  1. Kya Baat Hai Baba.........Bilkul Sahich Bola Tu.........Master of Journalism & Mass Communication Ka Course Krne K Baad Bhi Aaj Graphic Designer Me Jyada Sukoon Lgta Hai..........

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    1. यही वास्तविकता ही है

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