दशहरे में राम बनने वाला 'जुनैद' कैसे बन गया हैवान...

समाज किस ओर जा रहा है, कहाँ भागा जा रहा है कोई तो पकड़ लो, कोई तो रोक लो, यहां दरिंदा भी कैसे जगह बना रहा है। यह सब बातें अंतरमन को कही न कही टीसती रहती हैं, अन्दर ही अन्दर सवाल पूछती है कि तुम कैसे देख सकते हो, क्या तुममे भी इंसानियत नहीं रही। क्या तुम्हे भी किसी असहाय मां जिसने अपने कलेजे के टुकडे को खो दिया है उसका दर्द महसूस नहीं होता , तुम्हें उस बाप का भी दर्द नहीं महसूस होता जिसने अपने लाठी के सहारे को खो दिया हो और बेसहारा पड़ा कही कोने में तड़प रहा है, या फिर उस बहन का जो इस उम्मीद में रहती थी कि राखी आये तो वो अपने भाई की सूनी कलाई पर राखी बांधे। आखिर तुम्हें इन सब बातों का मलाल कैसे नही होता ,कैसे किसी घर के इकलौते चिराग के बुझ जाने से तुम्हें उस घर में अंधेरा महसूस नही होता...चलो कोई न सिर्फ तुमने ही ठेका थोड़ी ले रखा है दर्द तो सबको महसूस होना चाहिए था

फिर भी एक सवाल उठता है कि ये अचानक बिना हवा बयार के अचानक इतना तेज तूफान कहां से आता है जो बिना किसी आहट सब कुछ उथल-पुथल कर चला जाता है। मेरे गांव का वो किस्सा अब सिर्फ किस्सा बन रह गया है जब रहीम चाचा का जुनैद ईद पर घर आता था और पहले अपने घर न जाकर हमारे घर दुआ-सलाम करने आता था, ईद वाले दिन सेवई खिलता था, जश्न मनाता था, मां का आशीर्वाद, चाचा का प्यार , हमसब की मार लेकर जाता था लेकिन हादसे के पहले वो अचानक कैसे बदल गया था, किस बात पर रूठ गया था जिसे मानाने का मौका तक नहीं दिया...

वही जुनैद था जो हमारे घर को अपना समझ दिन भर हुडदंग काटा करता था, मां के मंदिर से आते ही सबसे पहले प्रसाद के लिए भागा जाता था लेकिन अचानक कैसे वो मंदिर-मस्जिद में फर्क की बातें करने लगा, कैसे वो नवरात्री और दशहरे से नफ़रत करने लगा, कैसे को एक कौम को लेकर गाली बकने लगा, किसने उसके अन्दर यह बीज बोई जो ऐसा हो गया. मोहल्ले में राम का रूप कहा जाने वाला जुनैद कैसे राम को गाली देने लगा...  वही जुनैद जब गाँव में दशहरे की झांकी निकलती तो राम का रूप धारण करता था जिस बात का हमारी पुरी मंडली को मलाल रहता था लेकिन वो हंसी-खुशी सबकी ढेर सारी दुवाएं के जाता था.  नवरात्री, दशहरा, होली दिवाली, ईद, बकरीद सब मिलकर मानाने वाला लड़का आज ईद वाले दिन क्यों रूठे मन से भी एक बार सेवई के लिए नहीं पूछ रहा है. चाँद दिखते ही भागा-दौड़ा आने वाला जुनैद आज कही और भागा जा रहा है. इन सब में कही न कही हमारी भी गलती रही होगी लेकिन मैं तो ऐसा ही था पर वो तो समझदार और होशियार था.

 वह खौफनाक मंज़र आज भी आँखों के सामने नाचता रहता है जब जुनैद खून से सनी खंजर लेकर गलियों में दौड़ा-भागा जा रह  था, लोग चिल्ला रहें थे कि आज इसपे खून सवार है, आज किसी हिन्दू की जान लेकर ही मानेगा और फिर कुछ लोगों का झुण्ड कही से आया जिसे देख सब आवक रह गए, जुनैद खुद भी हडबडा गया, कोई कुछ समझ पता इससे पहले वो झुण्ड अपना काम कर चला गया और खून में सना जुनैद तड़प रहा था. कोई उसे बचाने की पहल करता उससे पहले वह हम सबकों छोड़ कर जा चूका था, उसके जाने के बाद कुछ बचा था तो सिर्फ उसकी यादें. अचानक यह वक़्त की आंधी कहां आई यह समझ आ जाये तो हमें भी चैन की नींद आ जाये.

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