आइये अपने अन्दर एक दीप जलाये ..
एक बार फिर दिपावली का त्योहार मनाने हम जा रहे हैं दीपावली के छ: दिन बाद हम डूबते सूर्य को नमस्कार कर अगले दिन उगते सूर्य को नमस्कार कर छठ त्योहार मनाएंगे। सभी त्योहार हमें मन के अंधकार को दूर कर संतोष की कला सिखाता है ताकि हम सुख व शांति प्राप्त कर मुक्ति पाने के लिए प्रार्थना कर सकें।
क्या वास्तव में हम ऐसा कर पा रहे हैं। आत्ममंथन करें, आज फिर एक बार हमारे सामने एक सुनहरा अवसर है गणेश पूजा, श्राद्ध, दुर्गापूजा, दशहरा, बकरीद के बाद दीपावली, छठ, और गुरूनानक जयन्ती सभी बार-बार मुझे यह बताने का प्रयास कर रहा है कि सत्य की सदा जय होती है। रावणी शक्ति का हमेशा अंत होता है, अंधकार पर सदा प्रकाश विजय प्राप्त करती है लेकिन आज हम आधुनिकता के दौड़ में अंधा होकर दिन-रात लगे हुए हैं। हमें इतना भर भी सोचने का समय नहीं है कि जो कुछ भी हम कर रहे हैं क्या वह उचित भी है? हम यह भी भूल चुके हैं कि हम जो कुछ दिन-रात संग्रह कर रहे हैं, वह सब कुछ, इसी जगत में छोड़कर जाना होगा। धन कमाना बुरा नहीं है लेकिन अंधा होकर धन अर्जित करना बिल्कुल बुरा है।
मनुष्य को जीवन में तीन अवस्था से गुजरना पड़ता है, बचपन, जवानी और बुढ़ापा।पर इस युग में बच्चो का बचपना स्कूल के बस्तो के तले दब कर ही निकल जा रहा है, आज कल के बच्चों का बचपन इंटरनेट ,गेम ,सिनेमा ,कार्टून में ही निकल जा रहा है ,बचपन जीवनकाल के हसीन लम्हों में से एक होता है। इस उम्र में हमें ज्ञान रुपी धन अर्जित करना चाहिए क्योकि यह वह धन होता है जो पूरी ज़िन्दगी हमारे ही साथ रहता है. जवानी में परिश्रम रूपी धन अर्थात कर्मधन अर्जित करना चाहिए, इस धन से अपना, अपने परिवार का, अपने वंशजों का ख्याल रखते हुए जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए।
बुढ़ापा जीवन की अंतिम अवस्था होती है इसमें हमें नियम सयम की जरुरत होती है जिसे हमें बना कर रखना चाहिए। जीवन को हमें संतोषी बन कर ही जिन होगा ,अगर हमें एक सुखी जीवन जीना है तो। जिस व्यक्ति को जीवन में संतोष नहीं आता, उसकी जिंदगी का अंत बुरा होता है। कामना की पूर्ति से एक और कामना पैदा हो जाती है हिटलर, नेपोलियन और सिकन्दर जैसे योद्धाओं को जब बेसब्री के चश्में लगे तो उन्होंने पूरे विश्व को आपने अधीन करना चाहा, रावण को जब भोग विलास की कामनाओं ने बेसब्र किया तो उसने श्रीराम से बैर ले लिया और परिणाम क्या हुआ यह बताने की आवश्यकता नहीं है।
जैसा की कहा गया है संतोषम् परम सुखम : ।
आईये, इस दीपावली, छठ, गुरूपर्व के अवसर पर एक दीप हम, संतोष प्राप्ति के लिए जलाएं, जो लोभ रूपी अंधकार से हमें मुक्ति दिलाएं। भारत अध्यात्म का देश है, और जो अध्यात्म के मार्ग पर चलकर लोभ पर विजय प्राप्त करने में सफल हो जाएगा, उसे मोक्ष तो अवश्य मिलेगी वर्ना लोभ हमें अनंत जन्मों तक जीवन मृत्यु के चक्र में घेरे रखेगा और हम यूं ही भटकते रहेंगे।
क्या वास्तव में हम ऐसा कर पा रहे हैं। आत्ममंथन करें, आज फिर एक बार हमारे सामने एक सुनहरा अवसर है गणेश पूजा, श्राद्ध, दुर्गापूजा, दशहरा, बकरीद के बाद दीपावली, छठ, और गुरूनानक जयन्ती सभी बार-बार मुझे यह बताने का प्रयास कर रहा है कि सत्य की सदा जय होती है। रावणी शक्ति का हमेशा अंत होता है, अंधकार पर सदा प्रकाश विजय प्राप्त करती है लेकिन आज हम आधुनिकता के दौड़ में अंधा होकर दिन-रात लगे हुए हैं। हमें इतना भर भी सोचने का समय नहीं है कि जो कुछ भी हम कर रहे हैं क्या वह उचित भी है? हम यह भी भूल चुके हैं कि हम जो कुछ दिन-रात संग्रह कर रहे हैं, वह सब कुछ, इसी जगत में छोड़कर जाना होगा। धन कमाना बुरा नहीं है लेकिन अंधा होकर धन अर्जित करना बिल्कुल बुरा है।
मनुष्य को जीवन में तीन अवस्था से गुजरना पड़ता है, बचपन, जवानी और बुढ़ापा।पर इस युग में बच्चो का बचपना स्कूल के बस्तो के तले दब कर ही निकल जा रहा है, आज कल के बच्चों का बचपन इंटरनेट ,गेम ,सिनेमा ,कार्टून में ही निकल जा रहा है ,बचपन जीवनकाल के हसीन लम्हों में से एक होता है। इस उम्र में हमें ज्ञान रुपी धन अर्जित करना चाहिए क्योकि यह वह धन होता है जो पूरी ज़िन्दगी हमारे ही साथ रहता है. जवानी में परिश्रम रूपी धन अर्थात कर्मधन अर्जित करना चाहिए, इस धन से अपना, अपने परिवार का, अपने वंशजों का ख्याल रखते हुए जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए।
बुढ़ापा जीवन की अंतिम अवस्था होती है इसमें हमें नियम सयम की जरुरत होती है जिसे हमें बना कर रखना चाहिए। जीवन को हमें संतोषी बन कर ही जिन होगा ,अगर हमें एक सुखी जीवन जीना है तो। जिस व्यक्ति को जीवन में संतोष नहीं आता, उसकी जिंदगी का अंत बुरा होता है। कामना की पूर्ति से एक और कामना पैदा हो जाती है हिटलर, नेपोलियन और सिकन्दर जैसे योद्धाओं को जब बेसब्री के चश्में लगे तो उन्होंने पूरे विश्व को आपने अधीन करना चाहा, रावण को जब भोग विलास की कामनाओं ने बेसब्र किया तो उसने श्रीराम से बैर ले लिया और परिणाम क्या हुआ यह बताने की आवश्यकता नहीं है।
जैसा की कहा गया है संतोषम् परम सुखम : ।
आईये, इस दीपावली, छठ, गुरूपर्व के अवसर पर एक दीप हम, संतोष प्राप्ति के लिए जलाएं, जो लोभ रूपी अंधकार से हमें मुक्ति दिलाएं। भारत अध्यात्म का देश है, और जो अध्यात्म के मार्ग पर चलकर लोभ पर विजय प्राप्त करने में सफल हो जाएगा, उसे मोक्ष तो अवश्य मिलेगी वर्ना लोभ हमें अनंत जन्मों तक जीवन मृत्यु के चक्र में घेरे रखेगा और हम यूं ही भटकते रहेंगे।
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