मंत्री के डर से लाश का इलाज करते रहें बीआरडी मेडिकल कालेज के डॉक्टर

गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल की मौत के मंज़र को बयां नहीं किया जा सकता, चाहे हम जितनी भी संवेदना प्रकट कर ले लेकिन उन परिवार के दर्द को साझा नहीं कर सकते जो हमारी सिस्टम की लापरवाही की वजह से मिला है। कोई उस मां के दर्द को नहीं बाट सकता, जिसके जिगर के टुकड़े ने उसकी नज़र के सामने दम तोड़ दिया। ऐसे न जाने के​ कितने रिश्ते हैं जिन्होंने अपने नौनिहालों को खो दिया। उसके बाद भी अस्पतला प्रशासन ने उनकी संवेदनाओं के साथ जो खेल खेला वह चौकाने वाला है।

सिद्धार्थनगर के रामसकल से जब पत्रकारों ने बात की तो वह फफक पड़े। उन्होंने आप बीती सुनाते हुए कहा कि अगर उनका पोता मर गया था तो बता देते उसका क्रिया करम करने के लिए घर ले जाते। लेकिन डॉक्टर साहब आए और बोले कि मंत्री का दौरा है और बाहर मीडिया खड़ी है इसलिए शव को कंबल से ढ़क कर बैड पर रखे रहो ताकि ऐसा लगे कि वह जिन्दा है और उसका इलाज चल रहा है।

रामसकल कहते हैं कि बीआरडी के डाक्टर मौतों को छिपाने में लगे हैं। किसी से पीछे के रास्ते निकलने की बात कहते हैं। तो किसी को मृत्यु प्रमाण पत्र देने से इंकार कर देते हैं। कई बेचारों को तो कोई कागज तक नहीं दिए।

पोते की मौत का गम झेल रहे राम सकल के अनुसार 8 अगस्त की सुबह वह पोते को तेज बुखार की हालत में लेकर मेडिकल कॉलेज आए थे। 10 तारीख की रात जब गैस खत्म हो गई तो पूरे इंसेफ्लाइटिस वार्ड में लोग घबरा गए बाद में चिकित्सकों ने बताया कि ऑक्सीजन आ रही है। इन दौरान बच्चों का इलाज होता रहा। और मेरे बच्चे की हालत बिगड़ गई। शनिवार सुबह बच्चे को झटके आने लगे और दोपहर तक उसने दम तोड़ दिया।

यह सर्व विदित है कि डॉक्टरी के पेशे में आने वाले इंसानों की संवेदनाएं मर जातीं हैं। क्योंकि ये संवेदनाएं उनके ​इलाज करने के रास्ते में रोड़ा होतीं हैं। एक डाक्टर के लिए मरीज कोई इंसान नहीं बस एक बीमार शरीर होता है, जिसे उन्हें इलाज देकर ठीक करना है। जब किसी बीमार शरीर में जान ही न रहे तो उसे इलाज देना कितना पेशेवर है? मरीज की मौत असलियत जानने के बाद अपनी नौकरी बचाने के लिए किसी गमगीन परिवार को घंटों तक शव को न लेजाने देना कहां तक जायज ठहराया जा सकता है?  

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