एक काल्पनिक जिसे पढ़ शायद हर कोई भावुक हो जाये

         

डियर मम्मी पापा, 
आज 9 साल के बाद मेरे बारे में एक बार फिर अदालत का फैसला आया है. मैं कहीं दूर आसमान से इसे देख पा रही हूँ और अब जब आप दोनों आज डसना जेल से निकालेंगे तो यकीन मानिये मैं बहुत खुश हो रही होंगी आखिर किस बच्चे को अपने मम्मी पापा को जेल में देख कर अच्छा लगता है .
पापा, आपकी लाडली अगर आज आपके पास होती तो आप उसका 22 वाँ जन्मदिन मनाने की तैय्यारियों में जुटे होते. और मैं शायद अपने मम्मी पापा की तरह ही एक डाक्टर बन चुकी होती या शायद कुछ और मगर जो भी होती आपको गर्व होता.
लेकिन मेरी किस्मत में शायद ये लिखा ही नहीं था. मैं आप दोनों के साथ एक खुशहाल जिंदगी बिताना चाहती थी हर दूसरे बच्चे की तरह, लेकिन 16 मई 2008 की रात हम सब पर भारी रही.
मम्मी तुम तो जानती हो मेरे बारे में. हर माँ अपने बच्चे के बारे में सब कुछ जानती है. मेरे सपने को मेरे दोस्तों को और मेरा सब कुछ. मगर यहाँ से मैं ये भी देख रही हूँ कि देश भर में लोग उस 16 मई की रात क्या कुछ हुआ उसे जानना चाहते हैं. आखिर क्यूँ आप दोनों को इतने लम्बे समय तक जेल में रहना पड़ा , ये भी जानना चाहते हैं और ये भी कि आखिर किसने मारा मुझे.
मम्मी, पापा बहुत सारे सवाल हैं जिसका जवाब शायद मुझे पता है मगर मैं यहाँ से उसे बता नहीं सकती.
एक 14 साल की मासूम उम्र में मैं ऐसा क्या जानने लगी थी कि मुझे मौत मिली ? मैंने ऐसा क्या किया था जिसने मुझे आप सब से जुदा क्या ? आखिर क्या हुआ था कि मेरा परिवार बर्बाद हुआ ?
पुलिस पर तो देश के बहुत सारे लोगों को भरोसा ही नहीं . आखिर हो भी कैसे? देखिये न , मेरी मौत के बाद उनका रवैया कैसा रहा ? मेरी मौत उन पुलिस वालों में कई ऐसे भी थे जिनके लिए मेरी मौत शायद उनके तिजोरी को भरने का अवसर बन गयी थी. मेरी हत्या की ताफ्शीस सही हो इससे ज्यादा उनकी निगाह शायद कुछ पैसे पे रही होगी शायद, इसीलिए तो उन्होंने सबूत भी मिटाए और रिपोर्ट भी ऐसी लिखी जिससे कुछ भी साबित नहीं हो सकता.
पापा, आखिर उन्होंने उस पैसे का किया क्या होगा ? अपने बच्चो के लिए कुछ खिलौने ख़रीदे होंगे ? या फिर कहीं घुमाने के लिए ले गए होंगे ? या फिर शायद उनकी अच्छी और महँगी पढाई का इंतजाम करने की फ़िक्र ने कराया होगा उनसे ये काम ? या फिर वे अपने बच्चो के लिए बनवाए होंगे आलिशान कमरे ?
मैं 14 साल की थी न पापा , इसलिए इतना ही सोच पाती हूँ. लेकिन फिर ये भी सोचती हूँ कि क्या मेरी मौत की कीमत सिर्फ यही है ? एक बच्चे को खुश करने के लिए दूसरे को इंसाफ न मिल पाए ये भी सोचते होंगे कुछ पापा लोग ?
मम्मी, पापा.. अब तो आप लोग जेल से बाहर आ गए न, अब मैं आपसे और कुछ मांग भी नहीं सकती. न लैपटॉप, न नया वाला आई फोन , न ही नए कपडे और भी कुछ नहीं. लेकिन बस एक ही गुजारिश है आप दोनों से. कुछ भी करिए , मगर उस मनहूस 16 मई 2008 की रात का सच जरुर सबके सामने लाइयेगा. जानते हैं क्यों ? मैं ये चाहती हूँ तो सिर्फ इसलिए क्योंकि कई सारे लोग मेरे बारे में भी बहुत सी अजीब बाते कहते रहे हैं. वो लोग मुझे बुरा बताते हैं और आपकी लाडली के बारे में अगर कोई बुरी बात कहे तो आपको अच्छा तो नहीं ही लगता होगा.
मम्मी और पापा .इस ख़त को लिखने के पीछे सिर्फ दो वजहे थी. एक तो आप दोनों को जेल से बाहर आने की शुभकामना देना और दूसरी कि उस रात का सच सामने लाने की गुजारिश.आखिर ये आपकी प्यारी आरुषि की इज्जत से जुड़ा मामला है.
अलविदा
आपकी आरुषि

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