शान -ए-अवध: लखनऊ
हज़ारों शहरों में ऊँचा घराना लखनऊ का है
ज़माना लखनऊ का था, ज़माना लखनऊ का है
ग़ज़ब के लोग होते थे अलग पहचान थी प्यारे
नवाबी दौर में इसकी निराली शान थी प्यारे
वो मेले औ तमाशे थे कि दुनिया होश खोती थी
दमकती, जगमगाती सी अवध की शाम होती थी
ग़ज़ब के लोग होते थे अलग पहचान थी प्यारे
नवाबी दौर में इसकी निराली शान थी प्यारे
वो मेले औ तमाशे थे कि दुनिया होश खोती थी
दमकती, जगमगाती सी अवध की शाम होती थी
नवाबी शहर है जिसको कि लछमन ने बसाया था
यहीं हज़रत महल ने हौसला अपना दिखाया था
यहीं बेगम ने ग़ज़लों की शमां जमकर जलाई थी
यहीं बारादरी में शाह ने महफ़िल सजाई थी
यहीं प्रकाश की क़ुल्फ़ी, यहीं राजा की ठंडाई
अदब वालों ने पूरे मुल्क में तहज़ीब महकाई
यहीं हज़रत महल ने हौसला अपना दिखाया था
यहीं बेगम ने ग़ज़लों की शमां जमकर जलाई थी
यहीं बारादरी में शाह ने महफ़िल सजाई थी
यहीं प्रकाश की क़ुल्फ़ी, यहीं राजा की ठंडाई
अदब वालों ने पूरे मुल्क में तहज़ीब महकाई
ये हज़रतगंज बल्वों की क़तारें जगमगाती हैं
यहीं पर शाम को जन्नत की हूरें मुस्कुराती हैं
गिलौरी पान की खाकर यहीं आशिक टहलते हैं
यहीं आकर बुज़ुर्गों के भी घायल दिल बहलते हैं
यहीं रैली, यहीं धरने, यहीं खादी दमकती है
यहीं आकर के जनता मंत्रियों की राह तकती है
यहीं पर ट्रांसफ़र होते, यहीं रुकवाए जाते हैं
यहीं पर आई जी पाण्डा मटकते पाए जाते हैं
यहीं पर शाम को जन्नत की हूरें मुस्कुराती हैं
गिलौरी पान की खाकर यहीं आशिक टहलते हैं
यहीं आकर बुज़ुर्गों के भी घायल दिल बहलते हैं
यहीं रैली, यहीं धरने, यहीं खादी दमकती है
यहीं आकर के जनता मंत्रियों की राह तकती है
यहीं पर ट्रांसफ़र होते, यहीं रुकवाए जाते हैं
यहीं पर आई जी पाण्डा मटकते पाए जाते हैं
अमीनाबाद, हज़रतगंज, कैसरबाग़ के जलवे
पराठे, नान, कुल्चे, कोफ़्ते, बादाम के हलवे
बिगुल इस शहर में फूँका था सूबे में बग़ावत का
सिंहासन भी यहीं डोला था, अंग्रेज़ी हुकूमत का
यहाँ हिन्दू मुसलमां एक थे, कोई न था काफ़िर
किनारे गोमती के अब भी है हनुमान का मंदिर
अदब, तहज़ीब, उल्फ़त की, बहुत सी यादगारें हैं
हुसैनाबाद में बिखरी हुसैनी यादगारें हैं
पराठे, नान, कुल्चे, कोफ़्ते, बादाम के हलवे
बिगुल इस शहर में फूँका था सूबे में बग़ावत का
सिंहासन भी यहीं डोला था, अंग्रेज़ी हुकूमत का
यहाँ हिन्दू मुसलमां एक थे, कोई न था काफ़िर
किनारे गोमती के अब भी है हनुमान का मंदिर
अदब, तहज़ीब, उल्फ़त की, बहुत सी यादगारें हैं
हुसैनाबाद में बिखरी हुसैनी यादगारें हैं
शराफ़त है, सदाक़त है, यहाँ ईमानदारी है
हुनर देखो यहाँ अब भी चिकन की दस्तकारी है
अभी तक इस शहर का एक इक जलवा नवाबी है
कि हिन्दुस्तान से बाहर तलक 'टुन्डा कबाबी' है
बताओ बाग़ ऐसा क्या, कहीं भी और देखा है
यहीं अम्बेडकर उद्यान, लोहिया पार्क होता है
नवाबों के नगर की आज भी शाही कहानी है
पुराने दौर से लेकर, अभी तक राजधानी है
सुनो 'जोगी' यहीं पर एक अदबिस्तान बसता है
मियाँ इस लखनऊ में पूरा हिन्दुस्तान बसता है ।
हुनर देखो यहाँ अब भी चिकन की दस्तकारी है
अभी तक इस शहर का एक इक जलवा नवाबी है
कि हिन्दुस्तान से बाहर तलक 'टुन्डा कबाबी' है
बताओ बाग़ ऐसा क्या, कहीं भी और देखा है
यहीं अम्बेडकर उद्यान, लोहिया पार्क होता है
नवाबों के नगर की आज भी शाही कहानी है
पुराने दौर से लेकर, अभी तक राजधानी है
सुनो 'जोगी' यहीं पर एक अदबिस्तान बसता है
मियाँ इस लखनऊ में पूरा हिन्दुस्तान बसता है ।
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