शुरुआत होनी चाहिये

 सोच बदलो      


थाने में लुटती इज़्ज़त ,जब कानून के रक्षक की भक्षक बन जायेगे तो आम लोगो का क्या होगा। अभी के समय में जो सूबे की स्तिथि है उसे देख कर कोई भी इंसान अपने आप को महफूज नहीं रक सकता ,जब पुलिस वाले खुद हवस के दरिंदे बन जायेगे तो उनसे हम समाज की सुरक्षा की उम्मीद कैसे कर सकते है ? अब  झांसी का मामला ही देख लो आप जहा पुलिस वालो ने  अपने ही  महिला मित्र को अपने हवस का शिकार बना लिया। हवस की भूख में लोग इंसानियत तक को भी भूल जा रहे है । आलम ये है कि हर रोज़ कोई ना कोई ऐसा मामला देखने को मिल जा रहा है ,समाज में जहा महिला सम्मान कि बात कही तो जाती है पर क्या वास्तव में इसपर हम अमल कर रहे है। सामाजिक आलोचना तो  सभी करते है ,समाज ऐसा है ,वैसा है ,पर समाज के सुधार के लिए गिने चुने लोग ही आगे आते है। अपने यहाँ लोगो को आलोचना करने का बस मौका मिलना चाहिए ,अपना समाज कमियों को पहले देखता है ,अच्छी चीज़े को नज़रंदाज़ करना तो मनो सदियों से चली आ रही परंपरा है।  कब तक इस सोच के साथ जीते रहेंगे। समाज को बदलने के लिए पहले हमें खुद को बदलना होगा। इस चीज़ कि शुरुआत होनी चाहिए। 

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