कौन कितना बदलेगा ?

साल 2015  है। 2016 का बेसब्री से इंतज़ार हो रहा है। जब 31 दिसंबर की रात 12 बजेंगे, तब पता नहीं क्या-क्या बजेगा? म्यूजिक बजेगा, आसपास पटाखों के शोर से आपके कान बजेंगे। फिर आपके मोबाइल का घंटी बजेगी। लोग आपको शुभकामनाएं देंगे। ऐसे जश्न मनाया जाएगा जैसे सब कुछ बदल जाने वाला है।


क्या बदलेगी हमारी सोच?
2015 में कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिन्हें अंजाम देने के लिए हमारी सीमित सोच ज़िम्मेदार है। दादरी के दर्द को भुलाना इतना आसान नहीं है। एक मांस के टुकड़े कि वजह से पड़ोस में रहने वाले एक मुस्लिम परिवार के कुछ सदस्यों की जमकर पिटाई होती है। कुछ लोग रात के अंधरे में उनका दरवाजा तोड़ते हैं। वह भागने की कोशिश करते हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं होता है। भीड़ इतनी हिंसक हो जाती है कि गुस्से में अपना होश खो बैठती है और पीट-पीटकर एक आदमी की हत्या कर देती हैं। यही नहीं उसके बेटे को भी अस्पताल पहुंचा दिया जाता है। यह सब देखते हुए भी हम और आप जैसे लोग चुप रहते हैं। यह सिर्फ दादरी की बात नहीं देश में कई ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। कभी हिन्दू-मुसलमान को मारता है तो मुसलमान-हिन्दू को।
हमारे पड़ोस में अत्याचार होते हुए हम दखते रहते हैं, लेकिन मदद के लिए हमारी मर्दानगी सामने नहीं आती है। देश में रेप के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं। सर्वे कहता है कि भारत में करीब 90 प्रतिशत रेप उनके द्वारा अंजाम दिए जाते हैं जो पीड़ित को करीब से जानते हैं। सब अपने आपको ज़िम्मेदार नागरिक कहते हैं, लेकिन कहीं न कहीं ऐसी घटनाओं के लिए खुद ज़िम्मेदार भी होते हैं।
हमारा समाज इतना परिपक्व है कि अगर किसी दलित की परछाई एक सवर्ण के ऊपर पड़ती है तो वह अपवित्र हो जाता है। चार रुपये के लिए एक दलित की हत्या कर दी जाती है। हमारे समाज में कई ऐसी चौंका देने वाली घटनाएं होती रहती हैं और इन सब घटनाओं के लिए हम जैसे लोग ज़िम्मेदार हैं, हमारी सोच ज़िम्मेदार है।

क्या बदलेंगे हमारे राजनेता?

2016 के आते ही क्या हमारे राजनेताओं की सोच में बदलाव आएगा। चुनाव के दौरान जिस तरह की भाषा का प्रयोग किया जाता है क्या वह बंद हो जाएगा? शैतान, नरपिशाच, महापिशाच, ब्रह्म पिशाच जैसे शब्‍द राजनेताओं की डिक्शनरी से हमेशा के लिए गायब हो जाएंगे? 2016 में हमारे राजनेता जाति और धर्म के नाम पर वोट नहीं मांगेंगे? जो वायदे किए हैं उन्हें पूरा करेंगे? सरकार जो 'सबका साथ, सबका विकास' की बात कर रही है वह सपना साकार हो पाएगा? हमारा विपक्ष भी एक ईमानदार विपक्ष की तरह व्यवहार करते हुए कम भिड़ेगा और ज्यादा सवाल पूछते हुए संसद को चलने देगा? क्या 2016 की राजनीति में राज कम और नीति ज्यादा होगी?


क्या बदलेगा सोशल मीडिया?


सोशल मीडिया भी नए साल का इंतज़ार कर रहा है। नया साल आते ही यह सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगेगा। लोग अपने दोस्तों को नए साल की शुभकामनाएं देंगे। दोस्तों ने कैसे नए साल का जश्न मनाया, इसका स्टेटस भी आपको मिल जाएगा। हमारे दोस्त सभ्य समाज के नागरिक की तरह व्यवहार करेंगे, लेकिन कुछ दिन के बाद हमारे यह सभ्य दोस्त असभ्य हो जाएंगे। अगर आपका मत उन्हें अच्छा नहीं लगा तो आपको धमकाएंगे, गाली-गलौज करेंगे। जरूरत पड़ने पर मारने की धमकी भी देंगे।
साल बदलने से सब कुछ नहीं बदल जाता। साल के साथ-साथ इंसान को बदलना चाहिए, इंसान की सोच में बदलाव आना चाहिए। अपने अंदर छुपे हुए छुपेरुस्तम को मत छुपाएं। इसके चमचे मत बनिए, बल्कि उसे चुपचाप छोड़ दीजिए। मैं भी चाहता हूं कि सब कुछ बदल जाए। आप बदल जाएं, मैं बदल जाऊं, हमारी जो नकारात्मक सोच है वह बदल जाए। अगर ऐसा कर सकते हैं तो फिर जश्न मनाइए नए साल का। एक बार नहीं साल में दो बार मनाएं। मैं जानता हूं हम सब बदलने की बात करते हैं, लेकिन खुद नहीं बदलते हैं। यह जरूर सोचते हैं कि दूसरा हमारे लिए बदल जाए।

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