बहन-बेटियों की सुरक्षा से बढ़कर हैं गौरक्षा...

वैसे तो अपना देश दशकों से कई गंभीर समस्यायों से जूझ रहा है जिस पर देश के राजनेता समय-समय पर अपनी सियासी रोटी सेंकते है फिर मौके को भुनाने के बाद उसे ठंडे बस्ते में डाल देते है। महिला सुरक्षा देश के लिए हमेशा से चुनौतीपूर्ण मुद्दा रहा है लेकिन इस पर किसी ने उतनी गंभीरता से विचार नहीं किया जितना होना चाहिए। अगर हुआ होता तो समाज में महिलाओं की हालत ये नहीं होती। हमारे देश का एक इतिहास रहा है कि यहां सियासत के जरिये मुद्दे तय किये जाते है और फिर उसपर जमकर सियासत की जाती है. हाल फिलहाल के सबसे चर्चित मुद्दे की बात की जाए तो सरकार ने जिस तरह से गौ रक्षा पर ध्यान केंद्रित किया है उसे देख इसे सबसे गरम मुद्दा कहा जा सकता है। गौ रक्षा को लेकर जिस तरह से समाज के एक विशेष वर्ग में गज़ब का उत्साह देखने को मिल रहा है उससे तो यही अनुमान लगाया जा सकता है कि हमे भी सारे काम छोड़ गौ रक्षा करने में जुट जाता चाहिए। भले ही हमारे नुकड्डों और चौराहों पर गाय कचरा और पालिथीन खाकर मर रही हो लेकिन उससे हमे क्या फर्क पड़ता है। हमे तो सिर्फ इस बात से मतलब है कि कोई जुनैद हमारे गऊ माता के बारे में कुछ भला-बुरा कहे तो हम अपना प्रेम दिखाये।  कोई कही अफवाह फैलाये तो हम नरसंघार करने जाये


मेरा भी मानना है कि गऊ रक्षा होनी चाहिए लेकिन इस तरह से, इन्सनी खून बहा के, किसी मां की गोद सूनी कर करके, किसी बाप का सहारा छीन के, किसी घर का चिराग बुझा के। अगर इस तरह से गौरक्षा करनी है तो मैं उसका पक्षधर नहीं हूं। जिस तरह से गौरक्षा की आड़ में इंसानियत का खून किया जा जाता है उससे थोड़ा दुख होता है। गाय के बाद भी समाज में कई संवेदनशील मुद्दे है जिस पर हमे सोचने और काम करने की जरूरत है। एक सवाल हैरान करता है कि क्या बहन, बेटी और महिलाओं की सुरक्षा से बढ़ कर है गाय.. क्या निर्भया के जीवन से बढ़ कर है गाय... जिस तरह से हम भगवा धारण कर अपने आप को गौरक्षक का तमगा दे रहे हैं काश वैसे कुछ लोगों का समूह बहन-बेटियों की रक्षा के लिए सडकों पर उतर जाता लेकिन ऐसा सोचना खुद से बेमानी होगी। आज भी हमारे देश में न जाने कितनी बहन-बेटियां दरिंदों के हवस का शिकार हो रही है लेकिन इससे हमे क्या फर्क पड़ता। हाँ यह बात भी सही है कि जब हमे कैन्डल मार्च निकाल दिखावा करने होता तो हम कर लेंगे।

देश में महिला सुरक्षा की हालत यह है कि अगर यहां किसी महिला का बलात्कार होता है तो न्याय के लिए दर दर भटकना पड़ता है। जैसे-तैसे तमाम जद्दोजहद के बाद पीडिता अगर रिपोर्ट दर्ज करा भी लेती है तो उसे सिस्टम से एक बार और बलात्कार कराना पड़ता है,  जैसे वकील के बेशर्मी भरे सवालों की जबाबदेही, समाज से लड़ाई। अगर वह इन सब का भी सामना कर ले जाती है तो इस बात की गारंटी नहीं कि उसे न्याय मिल ही जाएगा। लेकिन वहीँ अगर गाय की सुरक्षा की बात करे तो इसमी ऐसा बिलकुल नहीं है। यहां तो ऑन द स्पॉट, बिना किसी झंझट के, कानून को अपने हाथ में लेते हुए भीड़ फैसला तुरंत कर देती है। कुछ मामलों में तो गलत-सही को परखे बिना पहले सज़ा दो। लोगों का तर्क यह भी है कि गऊ माता को कोई काट कर ले जाए और हम कानून की तरफ आश लगाए बैठे रहें। इंसानी नज़रिए से देखे तो यह सब वाकई हैरान करने वाली है हम जानवर जिसे मां की संज्ञा देकर इंसानी खून करने में भी नहीं हिचकते वही जब महिला जिसे देवी का दर्जा दिया गया है उसकी रक्षा की बात आती है तो हम अपना मुंह मोड़ लेते है. 

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