दादा के पास दिल नहीं जिगरा था, सिखाया- कैसे जीता जाता है मैच

1992 विश्व कप खेलने भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया रवाना हुई। वर्ल्ड कप से पहले ऑस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज के साथ एक त्रिकोणीय श्रंखला भी आयोजित की गई। भारतीय टीम में चयन हुआ बंगाल के 19 वर्षीय युवा खिलाड़ी सौरव चंडीदास गांगुली का। सौरव गांगुली को उस सीरीज में एक्का दुक्का मौके मिले पर वह खास प्रदर्शन न कर पाए। वर्ल्ड कप के लिए घोषित टीम में उनका चयन नहीं हुआ। वर्ल्ड कप के लिए टीम में न चुना जाना उतनी बड़ी बात नहीं थी, बड़ा मुद्दा ये था कि टूर के मैनेजर ने सौरव गांगुली के एटीट्यूड पर सवालिया निशान लगा दिए थे। मामला ये था कि एक मैच में सौरव गांगुली से मैदान में खेल रहे खिलाड़ियों के लिए ड्रिंक्स ले जाने को कहा गया, तो उन्होंने के जाने से इनकार कर दिया।

इस सीरीज के बाद सौरव गांगुली 4 साल तक भारतीय टीम में नहीं आ पाए। 1996 विश्व कप में मोहम्मद अजरुद्दीन की कप्तानी में सेमीफाइनल में आश्चर्यचकित करने वाली हार और उसके बाद सिंगापुर और सिंगापुर और शारजाह में पाकिस्तान के खिलाफ मिली पराजय से टीम का मनोबल निचले पायदान पर था।

फिर हुआ भारत का इंग्लैंड दौरा, 5 वर्षो बाद प्रिंस ऑफ कोलकाता की भारतीय टीम में वापसी हुई। ट्रेंट ब्रिज में सचिन के शतक के बावजूद पहला टेस्ट भारत हार गया। दूसरे मैच में हुए टीम में 2 परिवर्तन, सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ को मिली जगह। दोनो ने अपने चयन को सही साबित किया। जहां द्रविड़ ने बनाये 95 रन वही क्रिकेट के मक्का लॉर्ड्स के मैदान में गांगुली ने जड़ा अपना पहला शतक और भारत को हार से बचाया। तीसरे टेस्ट में एक और शानदार शतक।

5 साल पहले टीम से निकाले गए गांगुली 2 मैच के बाद लाइमलाइट में आ चुके थे।

सन 2000 आते आते सौरव गांगुली भारतीय टीम के अभिन्न अंग बन चुके थे। 1999 विश्व कप की हार के बाद अजरुद्दीन को कप्तानी से हटाकर सचिन तेंदुलकर को दूसरी बार कप्तान बनाया गया। टीम ऑस्ट्रेलिया गयी। तीन टेस्ट 3-0 और 8 ODI 7-1 से बुरी तरह हार गयी। सचिन ने कप्तानी छोड़ दी। फिर आया वो समय जो भारतीय क्रिकेट इतिहास का काला पन्ना था।

मैच फिक्सिंग कांड का खुलासा हुआ। पूर्व कप्तान मोहम्मद अजरुद्दीन, अजय जडेजा, नयन मोंगिया,आकाश चोपड़ा का नाम आया। पूरा देश स्तब्ध था। जिस देश मे क्रिकेट को धर्म का दर्जा हो वहां ऐसी घटना पूरी टीम को तोड़ने का माद्दा रखती है।

अज़हर जडेजा पर प्रतिबन्ध लग गया। सचिन ने कप्तानी से इनकार कर दिया। कुंबले चोटिल हो कर टीम से बाहर थे। ऐसे कठिन दौर में भारत की कप्तानी दी गयी 26 वर्षीय सौरव गांगुली को। टीम में बड़े बदलाव हुए। युवराज सिंह और ज़हीर खान का पदार्पण हुआ। भारत ने चैंपियंस ट्रॉफी के पहले मैच में स्टीव वा की विश्व चैंपियन ऑस्ट्रलिया को हरा कर धमाका कर दिया। दक्षिण अफ्रीका को हरा भारत फाइनल में पहुंचा।

फाइनल तो नहीं जीत पाया पर भारतीय क्रिकेट के सुनहरे भविष्य की इबारत लिखी जा चुकी थी। भारतीय क्रिकेट को ऐसा कप्तान मिल गया था जो दुश्मन को उसकी भाषा में जवाब देना जानता था।

2001 में अजेय ऑस्ट्रेलिया भारत के दौरे पर आई। 16 जीत के साथ ऑस्ट्रलिया का आत्मविश्वास और अहंकार दोनो ही सातवे आसमान पर था। पर दादा को दोनो ही उतारना आता था। स्टीव वा को टॉस के लिए इंतज़ार कराना हो या द्रविड़ लक्ष्मण की प्लेस इंटरचेंज कगे के कोलकाता में भारत को ऐतिहासिक जीत दिलाना हो, दादा ने कर दिखाया।

2002 में भारत इंग्लैंड के दौरे पर गयी। इंग्लैंड की सीम और स्विंग होने वाली पिच पर दादा ने वीरेंद्र सहवाग को ओपनर भेज दिया। अंग्रेज़ी कमेन्टर और विशेषज्ञ ने मज़ाक बनाया पर वीरेंद्र सहवाग ने अपने कप्तान को सही सावित करते हुए ताबड़तोड़ शतक ठोक दिया।

लॉर्ड्स के दादा का एक अलग ही रिश्ता रहा है। नेटवेस्ट सीरीज जीतने के बाद लंदन के लॉर्ड्स में दादा ने एंड्रू फ्लिंटॉफ को उसी की भाषा में जवाब देकर दिखाया था ।


2003 विश्व कप के लिए तमाम टीम के पास अच्छे विकेट कीपर बल्लेबाज थे, पर भारत के पास कोई न था। दादा ने राहुल द्रविड़ को कीपर बना भारत की बल्लेबाजी लाइनअप लम्बी कर ली। ऑस्ट्रेलिया से फाइनल हारने से पहले भारत ने लगातार 9 मैच जीते जो कि भारत का रिकॉर्ड आज भी कायम है। 2003 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ़ ऑस्ट्रेलिया की ही धरती पर सीरीज ड्रा करा कर दादा की टीम लौटी।

2004 में दादा की कप्तानी मे पाकिस्तान को उसी की धरती पर टेस्ट और वन डे दोनो में भारत ने धूल चटा दी। ये कारनामा करने वाले वो एकलौते भारतीय कप्तान है।
2005 में जॉन राइट के जाने के बाद दादा की अनुसंशा पर ग्रेग चैपल को कोच बनाया गया। ग्रेग चैपल जानता था दादा के रहते वो अपनी मनमानी नहीं चला सकता। दादा के एक दो सीरीज में खराब फॉर्म के बाद उनको टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। लोगो ने कहा अब सौरव गांगुली को रिटायरमेंट ले लेना चाहिए। पर दादा तो हमेशा की तरह लोगो को गलत साबित करने ही मानो क्रिकेट में आये हो। घरेलू क्रिकेट में जुझारू प्रदर्शन कर ग्रेग चैपल के ही सामने भारतीय टीम में वापस कर के दिखा दी।


2008 में फाइनली दादा ने भारतीय टीम को अलविदा कहा। नागपुर में आखरी टेस्ट के आखरी घण्टे तत्कालीन कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने दादा को वापस कमान दे दी।



दादा का भरतीय क्रिकेट में योगदान किसी रिकॉर्ड से नहीं आंका जा सकता । दादा ने टीम बनाई। दादा ने खिलाड़ी बनाये। सहवाग गंभीर युवराज भज्जी ज़हीर नेहरा और स्वयं महेंद्र सिंह धोनी दादा की कप्तानी की उपज थे। 2011 में धोनी की कप्तानी में भारत को विश्व विजेता इन्ही धुरंधरों ने बनाया। 2003 में दादा की कप्तानी में जो काम अधूरा रह गया था वो 2011 में धोनी की कप्तानी में भारत ने पूरा कर दिया। आज हम सबके चहेते दादा सौरव गांगुली का जन्मदिन है ..

Comments

Popular posts from this blog

दशहरे में राम बनने वाला 'जुनैद' कैसे बन गया हैवान...

काश मैं भी रवीश बन पाता !

गौरी पर 'गौर' किया, अब शांतनु पर इतनी 'शांति' क्यों...