आख़िर क्यों भारत के इस खिलाड़ी को हथियाना चाहता था पाकिस्तान?

धोनी के जन्म से कुछ साल पहले लगभग आधी सदी पहले एक शख्स का जन्म हुआ था। धोनी बेशक अपनी दुनिया, अपने जमाने के महान और बेहतरीन खिलाड़ी हैं। लेकिन यहाँ बात की जा रही है एक ऐसे शख्स की, जो बचपन में धोनी की तरह ही फुटबाल खेला करता था। अपनी स्कूल की टीम में फुटबाल की गोलकीपिंग करता था। वो स्कूल फुटबालर आगे चल कर फुटबाल को छोड़ हॉकी का दामन थाम लेता है । बस खेल बदलता है, पोजिशन नहीं और न ही उसके तेवर! इस तरह एक फुटबालर हॉकी का दिग्गज खिलाड़ी बन जाता है और शामिल हो जाता है महान खिलाड़ियों की उस जमात में, जिसमें मेजर ध्यानचंद जैसे लोग शामिल हैं।

आज जब धोनी के प्रशंसक उनका जन्मदिन मना रहे हैं, ऐसे में शंकर लक्ष्मण को कोई याद भी नहीं कर रहा है। जहाँ धोनी ने भारत को दो विश्वकप टी-20 2007 और 2011 विश्वकप में विजेता बनाया है, तो शंकर ने भी भारत को ओलम्पिक में दो स्वर्ण पदक और एक रजत पदक दिलाया है। शंकर ने 1956 ओलम्पिक में स्वर्ण, 1960 में रजत और फिर 1964 में स्वर्ण पदक जीतने में योगदान दिया। शंकर के खेल-स्तर का अंदाजा इससे भी लगता है कि शंकर ने लगातार तीन ओलम्पिक फाइनल में गोलकीपिंग की और बस एक गोल खाया। बस एक गोल…!

तीन एशियाई खेलों के फाइनल में भी उनके खिलाफ सिर्फ दो गोल हुए, यानी ओलिंपिक और एशियाड के छह फाइनल में उनके खिलाफ सिर्फ तीन गोल। शंकर का योगदान यहीं खत्म नहीं होता। 1966 का एशियाड जिसमें शंकर खुद कप्तान थे और उनकी कप्तानी में ही भारत ने 1966 एशियाड का स्वर्ण जीता।1966 के बाद भारत को एशियाड का स्वर्ण जीतने में 22 साल लग गए।

कहा जाता है कि पाकिस्तान के शेफ डे मिशन मेजर जनरल मूसा ने कहा था कि हमें (पाकिस्तान को ) शंकर और जोगिन्दर दे दो, फिर हमें कोई नहीं हरा सकता। मूसा को जवाब देते हुए इंडिया हॉकी के अध्यक्ष अश्वनी कुमार ने कहा कि इसके लिए पाकिस्तान को हमसे जंग लड़नी होगी। यह हैसियत थी शंकर की हॉकी में। वो भी हॉकी के इस दौर में जब चेस्ट गार्ड पैड जैसे संसाधन न के बराबर थे।

आस्ट्रेलियाई हॉकी मैगजीन हॉकी सर्किल ने शंकर के बारे में लिखा था कि शंकर को हॉकी की बाल फुटबाल जितनी बड़ी दिखती थी। धोनी जहाँ क्रिकेट खेल कर आज अकूत सम्मान पा रहे हैं, वहीं शंकर जैसे लोगों का कोई नाम भी नहीं जानता। शंकर अपने आखिरी वक्त बड़ी ग़ुरबत में जिए, उन्हें अपने जीवन के निर्वाह के लिए बड़े संघर्ष करने पड़े।

भारत सरकार की तरफ से उन्हें अर्जुन अवार्ड और पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा गया। लेकिन सम्मान और अवार्डों से किसी का पेट नहीं भरता, रोटी के लिए पैसे चाहिए होते हैं। किसी को अवार्ड देने भर से उसका सम्मान नहीं होता, जब तक कि उसे दिलों में, यादों में नहीं रखा जाता। भारतीय खेल-प्रेमी अक्सर किसी खिलाड़ी को सम्मान या उसे उसकी सही जगह देने के मामले में बड़ी कंजूस का प्रदर्शन करते हैं।

महेंद्र सिंह धोनी का जन्मदिन मनाने, उनको सम्मान देने में हमें अपने दूसरे दिग्गजों को नहीं भूल जाना चाहिए। शंकर का देहांत 73 साल की उम्र में गैंगरिन से हो गया। शंकर और धोनी दोनों ही सेना के सदस्य हैं। धोनी मानद हैं और शंकर आर्मी का हिस्सा थे। शंकर भारतीय हॉकी टीम के साथ ही सेना में भी शामिल थे। फर्क इतना है कि 7 जुलाई भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का जन्मदिन पूरे देश को याद है और शंकर को भुला दिया गया है।

जन्मदिन मुबारक शंकर!

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