काश! किसी ने पहल की होती।, आज बीएचयू का तमाशा नहीं बनता


देखते ही देखते एक अच्छा-खासा और जरूरी सा आंदोलन कब हिंसाई और बौद्धिक तमाशा में बदल जाता है समझ में नहीं आता. लड़कियों की मांग कहाँ गलत थी. ? क्या अपनी सुरक्षा की मांग करना नाजायज है ? या उपर से ये कहना कि दो मिनट वीसी साहेब आकर मिल लेंगे तो हम लोग अपना प्रदर्शन बन्द कर देंगे।
कितना अच्छा होता कि पहले ही दिन वीसी साहेब आते और लड़कियों के सर पर हाथ रखकर कह देते की "बेटी आप लोग निर्भीक रहें बीएचयू प्रशासन सदैव आपके साथ है" इतनी जिम्मेदारी तो बनती है न ? वाइस चांसलर एक यूनिवर्सिटी का गार्जियन ही तो है और बीएचयू प्रशासन संरक्षक। अब लड़कियां और लड़के अपनी बात इनसे नहीं कहेंगे तो किससे कहेंगे ?
क्या इनको इतना पता नहीं था कि लड़कियों को सुरक्षा के प्रति आश्वस्त नहीं किया गया,तो कुछ लोग इस जरूरी आंदोलन के बहाने माहौल बिगाड़ने की भयंकर साजिश रच सकतें हैं..कुछ कलम लेकर बैठ सकते हैं और कुछ बम लेकर.
और दुर्योग से वही हुआ भी..रात दस बमों की आवाज से समूचा परिसर ही नहीं दो किलोमीटर तक का इलाका गूंज उठा,अब बताइये ये बम बनाने वाले कौन लोग होंगे ? और उनकी मंशा क्या रही होगी.?। ये भी बताना जरूरी नहीं समझता कि कुछ लोग मन ही मन इसके और भयावह होने की कल्पना से कितने खुश हुए जा रहें हैं.

ये शायद बौद्धिक विकलांगता का दौर है.जहां संवेदना एक प्रोडक्ट की भांति बेच सकता है आदमी। सब बेच रहे हैं..कुछ मीडिया वाले और कुछ बुध्दिजीवी।
लेकिन कहें किससे..? जब अपना डॉक्टर ही मरीज हो तो इलाज कैसे होगा...? यहाँ तो वीसी साहेब ही पूरी तरह आत्ममुग्धता और घमंड में चूर हैं..पता नहीं दो मिनट बात करने में उनका क्या बिगड़ रहा था।
मुझे भोजपुरी में एक कहावत याद आती "जेकर इसर अइसन ओकर दरीद्दर कइसन"?
देख रहा की रातों-रात वीसी के पक्ष में कूछ चाटुकार बुद्धिजीवियों और प्रोफेसरों की फौज भी खड़ी हो गयी है.जिसमें शर्म की बात ये है कि कुछ महिला प्रोफेसर भी हैं..मुझे समझ नहीं आता कि कुछ लोग अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए अपनी जमीर और संवेदना बेचकर अपनी बौद्धिक दरिद्रता को सत्यापित क्यों कर देतें हैं ?
मुझे ये भी समझ में नहीं आता कि विश्वविद्यालयों में चांसलर जैसे पद कौन सा अँचार डालने के लिए बनाए गए हैं.क्या इनका काम बस दीक्षांत में डिग्री बांटना है ?
क्या एचआरडी और पीएमओ से पहले चांसलर और राज्य सभा सदस्य महाराजा कर्ण सिंह जी को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए ? आखिर #BHU के सबसे बड़े गार्जियन तो वहीं हैं..क्या वीसी को एक बार तलब नहीं करना चाहिए कि " क्या कर रहे हो आप..ये सब क्या तमाशा " ?
लेकिन नहीं..ऐसा कुछ न हुआ..अब तो लड़के और लड़कियां दोनों घायल हैं..कुछ पुलिस वाले भी। विश्वविद्यालय दो तारीख तक बन्द हो गया..बेचारे सब इस भ्रष्ट सिस्टम में पीसे जा रहें हैं..
बस । सभी मित्रों और अग्रजों से निवेदन करता हूँ कि अफवाह न फैलाएं.खासकर व्हाट्सप्प पर बीएचयू के नाम से बने समूहों में...ये समय धैर्य रखने का है। बीएचयू हम सबका है।
शांति और बातचीत से ही किसी समस्या का समाधान सम्भव है। हिंसा से बस अपना अहंकार तृप्त होता है..बाकी कुछ नहीं होता,आखिर में बात-चीत करना ही पड़ता है।
कुछ राजनैतिक किस्म के लोगों से भी निवेदन है कि भइया इस मुद्दे को छात्रों का ही मुद्दा रहने दें..इसे लेफ्ट बनाम राइट न बनाएं।
लाठी खाने वालों में लेफ्ट-राइट दोनों ओर के लड़के-लड़कियां हैं.और इसको बौद्धिक तमाशा बनाने में भी दोनों का कम योगदान नहीं हैं..
हां बीएचयू से दूर बैठकर कीबोर्ड से की गयी आपकी एक बौद्धिक साजिश महामना के अखंड तपस्या से बने इस ज्ञान मन्दिर के सपने को चुटकियों में तहस-नहस कर सकती है,
राजनीति लोकसभा चुनाव में कर लीजियेगा,बिजली,पानी,सड़क, रोजगार,शिक्षा,स्वास्थ्य जैसे मुद्दे राजनीति करने के लिए बनें हैं.गांव और कस्बों से अथाह सपने लेकर यहाँ पढ़ने आए मासूम लड़के-लड़कियां नहीं।

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