सत्य की खोज में... मैं कौन हूं...


पहले वह ठीक था। अपर डिविजनल क्लर्क है। बीवी है, दो बच्चे हैं। कविता वगैरह का शौक है। वह मेरे पास कभी-कभी आता। कोई पुस्तक पढ़ने को ले जाता, जिसे नहीं लौटाता। दो-तीन महीने वह लगातार नहीं आया। फिर एक दिन टपक पड़ा। पहले जिज्ञासु की तरह आता था। अब कुछ इस ठाठ से आया जैसे जिज्ञासा शांत करने आया हो। उसका कुर्सी पर बैठना, देखना, बोलना सब बदल गया था। उसने कविता की बात नहीं की। बड़ी देर तो चुप ही बैठा रहा। फिर गंभीर स्वर में बोना, 'मैं जीवन के सत्य की खोज कर रहा हूं।' मैं चौंका। सत्य की खोज करने वालों से मैं छटकता हूं। वे अक्सर सत्य की ही तरफ पीठ करके उसे खोजते रहते हैं। मुझे उस पर सचमुच दया आई। इन गरीब क्लर्कों को सत्य की खोज करने के लिए कौन बहकाता है? सत्य की खोज कई लोगों के लिए अय्याशी है। यह गरीब आदमी की हैसियत के बाहर है। मैं, कुछ नहीं बोला। वही बोला, 'जीवन-भर मैं जीवन के सत्य की खोज करूंगा। यही मेरा व्रत है।' मैंने कहा, 'रात-भर खटमल मारते रहोगे, तो सोओगे कब।' वह समझा नहीं। पूछा, 'क्या-मतलब।

मैं आपके पास आता हूं, क्योंकि मैं जानता हूं कि आप भी सत्य की खोज करते हैं। आप जो लिखते हैं, उससे यही मालूम होता है।' मैंने कहा, 'यह तुम्हारा ख्याल गलत है। मैं तो हमेशा झूठ की तलाश में रहता हूं। कोने-कोने में झूठ को ढूंढ़ता फिरता हूं। झूठ मिल जाता है, तो बहुत खुश होता हूं।' वह समझा, उसे विश्वास हुआ। वह मुझे अपनी तरह ही सत्यान्वेषी समझता रहा। मैंने पूछा, 'तुम एकदम सत्यान्वेशी कैसे हो गए? क्या दफ्तर में पैसों का कोई गोलमाल किया है?' उसने कहा, 'नहीं, मुझे गुरु मिल गए हैं। उन्होंने मुझे सत्य की खोज में लगाया है।' मैंने पूछा, कौन गुरु हैं, वे?'उसने नाम बताया। मैं उन्हें जानता था। यूडीसी बोला, 'गुरुदेव की वाणी में अमृत है। हृदय तक उनकी बात पहुंच जाती है।' मैंने पूछा, 'दिमाग तक बात पहुंचती है या नहीं?' उन्होंने कहा, 'दिमाग! दिमाग को तो पलट देती है। इसका नमूना तो वह खुद था। उसकी साधना लगातार बढ़ रही थी। एक दिन जाते ही पूछने लगा, 'बताइए, मैं कौन हूं?' मैंने कहा, 'तुम बिहारीलाल हो, यूडीसी।' उसने कहा, आपका तर्क गलत है। गुरुदेव ने कहा है, ऐसे प्रश्नों का उत्तर मत दिया करो।
कोई भी मेरे इस प्रश्न का ठीक जवाब नहीं देता। पत्नी, बड़ा लड़का कोई सही जवाब नहीं दे पाया। गुरुदेव ने कहा, लगातार इस प्रश्न का उच्चारण किया करो- 'मैं कौन हूं? एक दिन तुम इसका उत्तर पा जाओगे और अपने को जान जाओगे।' वह दो-तीन महीने नहीं आया। उसके साथियों ने बताया कि वह पार्क में शाम को 'मैं कौन हूं?' कहता हुआ नाचता रहता है। दफ्तर में भी दिनभर कहता रहता है- 'मैं कौन हूं?' फाइलों पर लिख देता है- 'मैं कौन हूं?' जहां उसे दस्तखत करने होते हैं, वहां लिख देता है-'मैं कौन हूं?' एक दिन वह फिर आया। वही जीवन के सत्य की बातें करता रहा। गुरुदेव के गुणगान जब कर चुका तब मैंने उससे पूछा, 'तुम्हारे गुरु ने सत्य को पा लिया?' उसने कहा, 'बहुत पहले।' उसने कहा, 'उनका आलीशान आश्रम है, एयरकंडीशंड है पूरा।' मैंने पूछा क्या गुरु की आत्मा को गर्मी लगती है।' उसने कहा, 'गुरु ने ऐसे प्रश्नों का जवाब देने से मना किया है।' मैंने पूछा, 'तुम्हारे गुरुदेव के पास बढ़िया कार है न।' उसने कहा, 'हां है।' वे बढ़िया भोजन भी करते होंगे, जवाब मिला, हां करते हैं। मैंने पूछा, 'क्या आत्मा को पकवानों की भूख लगती है।' उसने कहा, 'गुरुदेव ने ये जवाब देने से मना किया है।' तब मैंने उससे कहा, 'तुम्हारे गुरु ने जीवन के सत्य को पा लिया है। इधर एयरकंडीशंड मकान और कार वगैरह भी पा लिए हैं। उके पास पैसा भी है। यानी गुरु की दृष्टि में सत्य वह है, जो अपने को बंगला, कार और पैसे के रूप में प्रकट करता है। उसने कहा, 'गुरुदेव के बारे में यह प्रश्न उठता ही नहीं है। वे तो भगवान की कोटि में आने वाले हैं। मैंने पूछा, 'तुम यूनियन में हो?' जवाब मिला- गुरुदेव का आदेश है कि भौतिक लाभ के संघर्ष में साधक को नहीं पड़ना चाहिए। मैंने कहा- 'तो फिर गुरु का सत्य अलग है और तुम्हारा सत्य अलग। गुरु का सत्य वह है जिससे कार, बंगला, रुपया जैसी भौतिक प्राप्ति होती है। तुम्हारे लिए वे कहते हैं भौतिक लाभ के संघर्ष में मत पड़ो। यह तुम्हारा सत्य है। कौन-सा सत्य अच्छा है? तुम्हारा या गुरु का?' उसे जवाब नहीं सूझा तो चिढ़ने लगा। फिर उसने आना बंद कर दिया। फिर पता चला कि उसे सस्पेंड कर दिया गया।
एक दिन अचानक आया। बोला मुझे एक अच्छा फौजदारी वकील करा दीजिए। मैंने कहा, 'मामला क्या है?' उसने कहा, 'मैंने फौजदारी की है। केस चलेगा'। फिर उसने बताया- परसों गुरुदेव के पास गया था। उन्होंने कहा- आओ बैठो। दो स्त्रियां उनके साथ थीं, मसाज के लिए। पूछने लगे साधना कैसी चल रही है। मैंने कहा- साधना तो सफल हो गई।' वे चौंके पूछा, मैं कौन हूं का उत्तर मिला। मैंने कहा नहीं- पर यह उत्तर मिल गया कि तुम कौन हो। 'और साहब, मैं गुरु पर टूट पड़ा। खूब पिटाई की। अब मुझे एक अच्छा वकील दिला दीजिए।'
~ साधना का फौजदारी अंत

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