पत्रकारों का दुख सिर्फ गौरी लंकेश की ही मौत पर क्यों उमड़ा


गौरी लंकेश की मौत पर मातम मनाया जाए लेकिन तमाशा न बनाया जाए, यह कोई पहली बार किसी पत्रकार की हत्या नहीं हुई है जो प्रेस क्लब पर सभाएं संबोधित की जा रही है। साहब ढोंग व दिखावा दुनिया बखूबी समझती है। इस देश ने पत्रकारों को जिंदा जलते देखा है, सीने पर गोलियां खाते देखा है, कईयों को मरते देखा है। शाहजहांपुर में एक पत्रकार को फूंक डाले गये जांबाज पत्रकार जागेंद्र सिंह के मामले ने पूरे यूपी और देश भर में तहलका मचा दिया था। इस मामले में तब की अखिलेश सरकार के एक प्रभावी मंत्री राममूर्ति वर्मा और उसके गुर्गे तथा कोतवाल श्रीप्रकाश राय समेत पूरी टोली इस नृशंस हत्‍याकांड में शामिल थी। मगर भारतीय प्रेस क्‍लब इस माले में पूरी तरह तटस्‍थ रहा, मानो इस मामले से उसका कोई लेना-देना ही न हो।


गुरमीत राम रहीम के काले कारनामों पर से पर्दा उठाने वाले पूरा सच के संपादक रामचंद्र छत्रपति की हत्या पर आवाज बुलंद की थी। पेशे से वकील था रामचंद्र छत्रपति, लेकिन अपराधियों से पूरा सच उगलने के अभियान के तहत उसने रामरहीम का कच्‍चा-चिट्ठा इतना छाप दिया कि मानो तूफान भड़क गया। नतीजा यह हुआ कि उसके चंद मीनों पहले ही रामचंद को रामरहीम के गुर्गों ने बुरी तरह पीट कर मौत के घाट उतार दिया। लेकिन प्रेस क्‍लब आफ इंडिया पर कोई भी फर्क नहीं पड़ा।

लेकिन आज यानी 9 सितम्‍बर को  बिहार के अरवल में राष्ट्रीय सहारा अखबार के पत्रकार को गोली मार कर उसे मौत की नींद सुलाने का जघन्‍य अपराध हुआ है। मगर इसके बावजूद देश भर के पत्रकारों की शीर्ष ऐशगाह यानी प्रेस क्‍लब ऑफ इंडिया के कर्ताधर्ताओं पर कोई भी फर्क नहीं पड़ा।

लेकिन अब सवाल यह जरूर उठने लगे हैं कि पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में आयोजित विरोध सम्मेलन में प्रेस क्लब में किस हैसियत से जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार भाषण दे रहा था। क्या तमाम पत्रकारों की आवाज कम पड़ गई या इसे भी राजनीति का अड्डा बनाकर अपनी पहचान उजागर कर रहे हो आप सब। जिसने भी इस परंपरा की शुरुआत की है वह घोर नींदनीय है। प्रेस क्लब पत्रकारों और मीडिया से जुड़े लोगों के लिए है। यहां राजनीति से जुड़े लोगों को बुलाना अपनी जड़ों को खोखला करना है। आप किसी एक विचारधारा के समर्थन में खड़े हो रहे हैं या किसी एक खास विचारधारा का अंध विरोध कर रहे हैं ये समझ से परे है। लेकिन जो साफ-साफ समझ में आ रहा है वो ये कि निष्पक्षता नाम की कोई चीज नहीं रह गई।

हम किसी हत्या का समर्थन नहीं कर रहे और किया भी नहीं जाना चाहिए। चाहे कोई हो। सबको इस देश में अपनी बात रखने का अधिकार है। ये कन्हैया गौरी लंकेश की हत्या पर आवाज उठा रहा है। वैसे ये कन्हैया को किस हैसियत से पत्रकार सम्मेलन में बुलाया गया था। अगर, गौरी लंकेश निर्भीक, निष्पक्ष, स्वतंत्र लेखन करती थीं और उनकी हत्या किसी अतिवादी ने की है तो उस हत्यारे को सजा दिलाने की मांग करने प्रेस क्लब में कन्हैया कुमार को किस हैसियत से तथाकथित निष्पक्ष पत्रकारों ने बुलाकर मंच प्रदान किया था। इसके बाद भी आप कहते हो कि हम निष्पक्ष हैं। निष्पक्ष तो तब होते जब हर उस पत्रकार या आम आदमी जो देश के किसी कोने में सत्ता के विरोध में आवाज उठाता है,और आप उनका साथ देते लेकिन ऐसे कहां हो पाएगा। 

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